Pune Water Crisis : पुणे बिल्डरों द्वारा लिए गए 23 गांवों में पानी की समस्या और बढ़ गई है। यहां आवास परियोजनाओं को केवल बिल्डरों से लिए गए हलफनामे के आधार पर अनुमति दी गई है, जिसके तहत वे अपने ग्राहकों की बिजली पानी की जरूरतों के लिए जिम्मेदार होंगे। लेकिन, यह विचार नहीं किया गया था कि बिल्डर इन निवासियों को पानी की आपूर्ति कैसे करेंगे या कौन सा ग्राम पंचायत उन्हें कैसे पानी की आपूर्ति करेगा। जिसके कारण अब पानी की समस्या बढ़ गई है। बता दें कि, पुणे महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (पीएमआरडीए) 2018 से बिल्डरों से ये हलफनामे ले रहा है, उस समय आज के एक ताकतवर नेता पीएमआरडीए के अध्यक्ष थे।
इन गांवों को पिछले साल पुणे नगर निगम (पीएमसी) में मिला दिया गया था। इन गांवों का शहरीकरण कर दिया गया है। पहले पीएमसी टैंकर से या जहां भी पानी की टंकियां होती हैं, वहां थोक आपूर्ति से पानी की आपूर्ति करती थी। गांव की सीमा के बाहर कानूनी या अवैध रूप से बनी हाउसिंग सोसायटियों को निजी पानी के टैंकर, बोरवेल से पानी मिल रहा है और कुछ जगहों पर यह महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण द्वारा पानी दिया जाता है।
PMRDA की स्थापना 2016 में हुई थी। उसके बाद इन गांवों में बड़ी आवासीय परियोजनाएं शुरू की गईं। पुणे और मुंबई के बड़े बिल्डरों ने उपनगरों पर ध्यान केंद्रित किया है, क्योंकि वहां विकास बहुत तेज गति से हो रहा है। शुरुआत में उन्होंने फ्लैट मालिकों को पानी की आपूर्ति की। बाद में उन्होंने उन्हें पानी उपलब्ध कराने में असमर्थता व्यक्त की। कई जगहों पर लोग टैंकर का पानी खरीदने को मजबूर हैं। यह सच है कि यहां के लोग पीने के पानी पर बहुत पैसा खर्च कर रहे हैं।
कुछ नगरसेवकों ने अपने कार्यकाल के दौरान कुछ सोसायटियों को पानी की आपूर्ति की। हालांकि नगर निकाय चुनाव में देरी हुई है। पार्षदों को पानी के टैंकरों पर 'खर्च' करना जारी रखना मुश्किल हो रहा है। इसलिए, इन नगरसेवकों ने अब इन गांवों और सोसायटियों को पानी सप्लाई करना बंद कर दिया है, अब यहां पर रहने वालों के लिए पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है।
हलफनामे की नीति तत्कालीन जब बनाई गई थी, उसके अनुसार, यदि कोई बिल्डर अपने ग्राहकों को बोरवेल का पानी उपलब्ध कराता है तो बिल्डरों के लिए अधिकृत हाइड्रोजियोलॉजिस्ट, भूजल सर्वेक्षण और योजना विभागों से अनुमति पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया था। इन बिल्डरों ने अपने हलफनामे में कहा है कि, अगर वे या ग्राम पंचायत अपने ग्राहकों को पानी उपलब्ध कराने में असफल रहते हैं, तो वे किसी न्यायालय की शरण नहीं ले सकते।
गांव के रहवासी रूपचंद गायकवाड कहते हैं कि उस समय अदालत ने बिल्डर के सामने एक शर्त रखी थी कि अदालत ने पहले उन क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया था जहां पानी उपलब्ध नहीं है या कोई वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध नहीं है।
चूंकि अब जल्दी नगर पालिका का चुनाव होने वाला है, इसे देखते हुए 23 गांव के लोगों ने पानी की आपूर्ति के लिए मांग शुरू कर दी है। गांव वालों का कहना है कि इन गांवों में पानी मुहैया कराने की जिम्मेदारी पीएमआरडीए या पीएमसी की होनी चाहिए। इन 30 गांव का मामला हाईकोर्ट में भी गया, हाईकोर्ट ने पीएमसी को पानी की आपूर्ति करने का निर्देश दिया और मामले को अगली सुनवाई के लिए तारिख मुकर्रर कर दी। अब पीएमसी ने इन गांवों में जलापूर्ति की योजना बनाना शुरू कर दिया है, वहीं पीएमआरडीए उन बिल्डरों को पत्र जारी कर रहा है, जो इन गांवों को पानी देने में असमर्थता जताई है।
पीएमआरडीए द्वारा तैयार की गई विकास योजना पर सुझावों व आपत्तियों की सुनवाई चल रही है। प्रशासन ने पीएमआरडीए के तहत विलय किए गए 23 गांवों सहित 4,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के लिए चार टीएमसी पानी की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। हालांकि अभी यह पता नहीं चल पाया है कि, इतना पानी कैसे आएगा। पीएमआरडीए क्षेत्रों में जलापूर्ति के लिए मसौदा योजना तैयार करने के लिए एक एजेंसी नियुक्त की गई है। हालांकि, इसने अभी तक अपनी रिपोर्ट जमा नहीं की है। चूंकि गांवों को पीएमसी में मिला दिया गया है, यह नागरिक निकाय की जिम्मेदारी है।