नई दिल्ली: आपके लिए वायरस की वजह से आई महामारी और लॉकडाउन की परिभाषा कुछ भी हो, घरों में कैद होने के बाद आप मौजूदा परिस्थिति को लेकर कुछ भी सोच रहे हों लेकिन प्रकृति के लिए यह संकट एक वरदान के तौर पर सामने आया है। इंसान को छोड़ दें तो ग्रह पर अन्य कई जीवों के लिए यह जीवन को बेहतर करने वाला समय है और ऐसे समय में जब इंसान ने काम से ब्रेक ले लिया है तब प्रकृति अपनी मरम्मत करते हुए खुद को संवारने में जुट गई है।
कोरोना महामारी के बहाने इंसान को इस बात अहसास हो गया है कि प्रकृति को संतुलन पर लाने के लिए कुछ करने की नहीं बल्कि कुछ न करने की जरूरत है, वह खुद ही अपने आप को ठीक कर सकती है। बीते दिनों में कई खबरें सामने आईं कि कैसे इस साल कछुए और अन्य समुद्री जीव बड़ी संख्या में तटों पर आना शुरु हो गए हैं, सड़कों पर जानवर नजर आ रहे हैं, पंजाब से हिमाचल प्रदेश के पहाड़ नजर आने लगे हैं और करोड़ो रुपए खर्च करने के बाद भी जो गंगा- यमुना इंसानों से साफ नहीं हुई वह लगातार निर्मल होती जा रही है। प्रदूषण भी निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है। अब इसमें एक और उदाहरण जुड़ गया है।
सुधर गई ओज़ोन परत की सेहत: इतिहास में ओजोन परत में हुआ सबसे बड़ा छेद अब भर गया है। दुनिया में बड़े पैमाने पर औद्योगिक गतिविधियां बंद हैं इस बीच असामान्य वायुमंडलीय परिस्थितियों के कारण आर्कटिक के ऊपर ओजोन परत में 10 लाख वर्ग किलोमीटर का सबसे बड़ा छेद भर गया है।
यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट (ECMWF) द्वारा कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) और कोपरनिकस एटमॉस्फेरिक मॉनिटरिंग सर्विसेज (CAMS) ने इस बात की पुष्टि की है। वैज्ञानिक लगातार पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाने वाली ओज़ोन के इस छेद पर लगातार नजर बनाए हुए थे। हालांकि यह स्पष्ट तौर पर सामने नहीं आ सका है लॉकडाउन से ओज़ोन छेद के भरने का सीधा संबंध है या नहीं।
धरती के ऊपर वायुमंडल में उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर ओजोन लेयर मौजूद है। इससे पहले लॉकडाउन में दक्षिणी ध्रुव के ओजोन लेयर के छेद को कम होने की बात सामने आई थी। मार्च- अप्रैल महीने में उत्तरी ध्रुव की ओजोन लेयर पर एक बड़ा छेद नजर आया था, जिसके बाद वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि यह अब तक का इतिहास का सबसे बड़ा छेद है जो 10 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला था।
कम हुए प्रदूषण का योगदान: रिपोर्ट्स के अनुसार ओजोन परत के छेद को कम करने के पीछे मुख्य रूप से 3 बड़े कारण थे- बादल, क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन्स। इन तीनों की मात्रा स्ट्रेटोस्फेयर में बढ़ती जा रही थी। इनकी वजह से जब सूरज की अल्ट्रवायलेट किरणें स्ट्रेटोस्फेयर में टकराती हैं तो उनसे क्लोरीन और ब्रोमीन के एटम निकल रहे थे। यह अणु ओजोन लेयर को पतला कर रहे थे और छेद बड़ा होता जा रहा था। प्रदूषण से इसमें और इजाफा होता लेकिन लॉकडाउन में प्रदूषण नहीं बढ़ पाया।
लॉकडाउन से सीधा संबंध नहीं: एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार छेद के बंद होने का लॉकडाउन के प्रदूषण के स्तर में कमी के साथ फिलहाल कोई सीधा संंबंध सामने नहीं आया है। यह ध्रुवीय भंवर और उच्च ऊंचाई वाली धाराओं की वजह से हुआ है जो ध्रुवीय क्षेत्रों में ठंडी हवा लाने के लिए जिम्मेदार हैं। विशेष रूप से जुलाई से सितंबर के दौरान दक्षिणी ध्रुव पर अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन परत में इस तरह के छेद काफी आम हैं लेकिन, इस बार बीते अप्रैल में आर्कटिक के ऊपर देखा गया ओजोन परत का छेद असामान्य था, जो कि अब भर गया है।
वैज्ञानिक लगातार इस घटना का अध्ययन कर रहे हैं, और इस बात पर भी ध्यान दिया जा रहा है कि जैसे पर्यावरण के अन्य कई पहलुओं पर लॉकडाउन का सकारात्मक असर पड़ा है, क्या उसका संबंध ओज़ोन के छेद भरने से भी है या नहीं।
क्या है ओज़ोन: ओजोन परत या ओजोन ढाल पृथ्वी के समताप मंडल का एक क्षेत्र है जो सूर्य के पराबैंगनी विकिरण के अधिकांश हिस्से को अवशोषित करता है, दूसरे शब्दों में सूरज की किरणें ओज़ोन से छनकर हम तक पहुंचती हैं। इस परत में ओजोन (O3) की उच्च सांद्रता होती है।