नई दिल्ली: जानवरों की कम से कम तीन से चार प्रजातियां, जैसे कि भारतीय चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, भारत में मरुस्थलीकरण के कारण विलुप्त हो गए हैं। शोधकर्ताओं ने संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD COP 14) की 14वीं बैठक में चेतावनी दी। जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक कैलाश चंद्र ने बताया कि हमारे पास 5.6 मिलियन से अधिक नमूनों के लिए एक डेटाबेस है, जो आजादी से पहले पूरे भारत से और पड़ोसी देशों से एकत्र किए गए हैं। वे इस बारे में बहुत सारी जानकारी देते हैं कि 100 से अधिक वर्षों में चीजें कैसे बदल गई हैं। अगर आप जियो-स्पेशल प्लेटफॉर्मों में उनके वितरण को देखते हैं। आपको एहसास होगा कि वनों की कटाई और मरुस्थलीकरण के प्रभाव के कारण कितने परिवर्तन हुए हैं।'
उन्होंने कहा, भारत में पहले से ही कम से कम तीन से चार प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं, जैसे कि भारत चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख, और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, कई और विलुप्त होने के कगार पर हैं और कई गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों की श्रेणी में आ गए हैं। शोधकर्ता ने जोर देकर कहा कि ये नमूने 150 से भी कम हो गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह बहुत चिंता का विषय है।
चंद्रा ने जोर देकर कहा कि कीटनाशक, पेस्टिसाइड्स, कृषि भूमि में परिवर्तित करना, इंडस्ट्रीज और केमिकल्स, अंधाधुंध विकास मरुस्थलीकरण हो कारण सकता है लेकिन सब कुछ रेगुलेटेड किया जाना है ताकि इसे कम किया जा सके और हम इस प्रक्रिया को वापस ला सकें।
शोधकर्ता ने यह भी कहा कि मरुस्थलीकरण न केवल जानवरों पर बल्कि संपूर्ण जैव विविधता को प्रभावित करता है। इससे सूक्ष्म जीव से लेकर मानव तक शामिल हैं। इस मरुस्थलीकरण से पूरी फूड चेन प्रभावित होती है।
फोरम में यह भी कहा गया कि भारत भूमि क्षरण के बढ़ते संकट का सामना कर रहा है। वनों की कटाई, अधिक खेती, मिट्टी के कटाव और आर्द्रभूमि के क्षय के माध्यम से इसके भू-भाग का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खराब हो गया है।
इस सप्ताह के शुरुआत में कन्वेंशन शुरू हुआ एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आया जब न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को मिट्टी की शुष्कता को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जहां कुछ सबसे कमजोर पारिस्थितिक तंत्र पाए जा सकते हैं।