Pradosh Vrat 2020: भगवान शंकर मनुष्य की हर कामनाओं को पूरा करने वाले माने गए हैं। माना जाता है कि जो भी प्रदोष व्रत करते हैं, उन्हें संसार के हर एक सुख की प्राप्ति होती है। खास बात यह है कि अधिकमास में इस व्रत का महत्व और फल और भी बढ़ जाता है। यह व्रत मनुष्य के दुखों का अंत करने के साथ सभी कष्टों से मुक्ति प्रदान करने वाला माना गया है। कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी आज 14 अक्टूबर को यह व्रत रखा जाएगा।
यह व्रत अधिकमास का आखिरी प्रदोष व्रत है। अधिममास भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इस मास में पड़ने वाले हर तीज-त्योहार का इसी कारण महत्व अधिक होता है। तो आइए जानें कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आज किस तरह से प्रदोष व्रत किया जाए और इसका महत्व और कथा क्या हैं।
प्रदोष व्रत मुहूर्त (Adhika Pradosh Vrat 2020 Muhurat)
प्रारम्भ – 14 अक्टूबर सुबह 11:51 बजे
समाप्त - 15 अक्टूबर सुबह 08:33 बजे
इसलिए है अधिकमास में प्रदोष व्रत महत्व ज्यादा (Adhikmaas Pradosh Vrat Mahatva)
अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है और ये मास भगवान विष्णु को समर्पित होता है, लेकिन भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी तक पाताल लोक में सोने चले जाते हैं। ऐसे में चार्तुमास में धरती की निगरानी भगवान शिव की होती है। इसलिए इस मास में पड़ने वाले हर तीज त्योहार पर केवल भगवान वष्णु का ही नहीं भगवान शिव का भी विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। यही कारण है कि प्रदोष व्रत करने वाले मनुष्य पर भगवान शिवका विशेष आशीर्वाद होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य का मान-सम्मान, धन-ऐश्वर्य आदि बढ़ता है। वहीं, संतान और दांपत्य से जुड़े कष्ट दूर हो कर सुखी पारिवारिक जीवन की प्राप्ति भी होती है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि (Pradosh Vrat Pooja Vidhi)
स्नान कर दिन दिन व्रतीजनों के सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए और भगवान शिव के समक्ष व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद जहां भगवान शिव की पूजा करनी है उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर दें। इसके बाद शिवजी समेत उनके परिवार के स्थापित करें। सफेद आसान पर खुद भी बैठ जाएं और भगवान को भी चौकी पर भी सफेद आसन ही दें। चौकी पर आसन बिछाने से पूर्व उस पर कुमकुम से स्वास्तिक बना दें। इसके बाद शिव जी को बेलपत्र, धतूरा और सफेद फूलों की माला पहनाएं और देवी पार्वती का श्रृंगार कर उन्हें लाल फूल और सिंदूर अर्पित करें। साथ ही गणपति जी और कार्तिकेय को भी पुष्प अर्पित कर दूर्वा चढ़ाएं। इसके बाद शिवजी के समक्ष सरसों के तेल का दीया जलाएं और भगवान शिव का ध्यान करते हुए अपनी मनोकामना उनके समक्ष रखें। इसके बाद उन्हें खीर का भोग लगाएं और सभी में वितरित करें। इसे बाद भगवान की आरती करें और कथा का श्रवण करें।
प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)
प्रदोष व्रत वार के अनुसार अलग-अलग होती है, लेकिन मुख्य प्रदोष कथा के अनुसार एक गांव में एक निर्धन विधवा ब्राह्मणी और उसका पुत्र रहते थे। दोनों ही भिक्षा मांग कर अपना जीवन चलाते थे। ब्राह्मणी और उसका पुत्र दोनों ही बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। ब्राह्मणी कई वर्षों से प्रदोष व्रत करती आ रही थी। एक बार ब्राह्मणी का पुत्र त्रयोदशी तिथि पर गंगा स्नान कर घर लौट रहा था कि उसके लुटेरे आ गए। लुटेरों ने उससे उसका सारा सामान छीन कर भाग गए। शोरगुल सुनकर राजा के सैनिक वहां पहुंचे और ब्राह्मणी के पुत्र को लुटेरा समझ कर राजा के सामने ले गए। राजा ने बिना ब्राह्मण युवक की बात सुने बगैर उसे कारावास में डलवा दिया। उसी रात राजा को एक स्वप्न आया जिसमें भगवान शिव आए और ब्राह्मण युवक को मुक्त करने का आदेश दिए। नींद खुलते ही राजा सीधे कारागार पहुंचे और युवक को मुक्त करने का आदेश दिया।
राजा युवक को साथ लेकर महल में ले आए और युवक का सम्मान किया। राजा ने युवक को कहा कि वह कुछ भी दान में मांग सकता है, तब ब्राह्मण युवक ने राजा से केवल एक मुठ्ठी धान मांगा। राजा उसकी मांग को सुनकर अचरज में पड़ गए। राजा ने युवक से प्रश्न किया कि सिर्फ एक मुठ्ठी धान से क्या होगा और भी कुछ मांग लो, ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलता है। युवक ने बड़ी ही विनम्रतापूर्वक राजा से कहा, हे राजन इस समय यह धान मेरे लिए संसार का सबसे अनमोल धन है। इसे मैं अपनी माता को दूंगा जिससे वे खीर बना कर भगवान शिव को भोग लगाएंगी। फिर हम इसे ग्रहण करेंगे। राजा युवक की बातों को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मंत्री को आदेश दिया कि ब्राह्मणी को सम्मान सहित दरबार में लाया जाए। मंत्री ब्राह्मणी को लेकर दरबार पहुंचे। राजा ने सारा प्रसंग ब्राह्मणी को सुनाया और उनके पुत्र की प्रशंसा करते हुए ब्राह्मणी पुत्र को अपना सलाहकार नियुक्त किया और इस प्रकार निर्धन ब्राह्मणी और उसके पुत्र का जीवन बदल गया।
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