भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह में अंधेरे पखवाड़े के आठवें (अष्टमी) दिन की मध्यरात्रि में हुआ था। यही कारण है कि भगवान की पूजा सुबह से प्रारंभ होने के साथ रात के 12 बजे तक अनवरत जारी रहती हैं। जब भगवान का जन्म होता है तब भगवान की पूजा-अर्चना के साथ उन्हें झूला झूलाने की परंपरा है। बता दें कि उनके जन्मोसत्सव पर भक्त व्रत और पूजा के साथ उनके जीवन से जुड़ी झांकियां भी सजाते हैं। भगवान का जब तक जन्म नहीं होता तब तक भजन-कीर्तन किया जाता है। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण अष्टकम पढ़ने का भी विशेष पुण्य लाभ मिलता है। इस दिन भगवान के इस पाठ को करने वाले मनुष्य का जीवन में कभी कोई कार्य नहीं रुकता और उसे हमेशा विजय की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि श्रीकृष्ण अष्टकम पढ़ने से भक्तों को वैसे ही रक्षा होती है जैसे कि भगवान श्रीकृष्ण हर बार कंस के आक्रमण और षड्यंत्र से बचा करते थे। अष्टकम पढ़ने से मनुष्य पर एक सुरक्षा कवच का आवरण बन जाता है। इसलिए उसके शत्रु उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते और वह अपने कार्य में सफल होते हैं। तो आइए जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण अष्टकम पढ़ कर इस पुण्यलाभ को प्राप्त किया जाए।
श्रीकृष्ण अष्टकम
चतुर्मुखादि-संस्तुं समस्तसात्वतानुतम्।
हलायुधादि-संयुतं नमामि राधिकाधिपम्॥1॥
बकादि-दैत्यकालकं स-गोप-गोपिपालकम्।
मनोहरासितालकं नमामि राधिकाधिपम्॥2॥
सुरेन्द्रगर्वभंजनं विरंचि-मोह-भंजनम्।
व्रजांगनानुरंजनं नमामि राधिकाधिपम्॥3॥
मयूरपिच्छमण्डनं गजेन्द्र-दन्त-खण्डनम्।
नृशंसकंशदण्डनं नमामि राधिकाधिपम्॥4॥
प्रसन्नविप्रदारकं सुदामधामकारकम्।
सुरद्रुमापहारकं नमामि राधिकाधिपम्॥5॥
धनंजयाजयावहं महाचमूक्षयावहम्।
पितामहव्यथापहं नमामि राधिकाधिपम्॥6॥
मुनीन्द्रशापकारणं यदुप्रजापहारणम्।
धराभरावतारणं नमामि राधिकाधिपम्॥7॥
सुवृक्षमूलशायिनं मृगारिमोक्षदायिनम्।
स्वकीयधाममायिनं नमामि राधिकाधिपम्॥8॥
इदं समाहितो हितं वराष्टकं सदा मुदा।
जपंजनो जनुर्जरादितो द्रुतं प्रमुच्यते॥9॥
भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद पाने के लिए श्रीकृष्ण अष्टकम का पाठ कभी भी किया जा सकता है, लेकिन जन्माष्टमी पर इसे जरूर पढना चाहिए।
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