पितृ पक्ष के प्रत्येक दिन तिथि के अनुसार मृत लोगों का श्राद्ध किया जाता है। वहीं कुछ खास पितरों का श्राद्ध खास दिन होता है, लेकिन हर किसी के श्राद्ध की विधि और समय एक ही होती है। यदि आप स्वयं ही अपने पितरों का श्राद्ध या तर्पण कर रहे हैं तो इसके लिए कुतप काल का समय चुनें। कुपत काल में ही पितरों का श्राद्ध किया जाना चाहिए। श्राद्ध पक्ष के सोलह दिन पितरों को समर्पित होते हैं। इन सोलह दिनों में पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान और ब्राह्मण भोज दिया जाता है। साथ ही कौवा, कुत्ता, गाय और चीटिंयों को भी प्रसाद खिलाना जरूरी होता है। मान्यता है की इस दिन किए गए दान और तर्पण सीधे पुरखों को प्राप्त होते हैं। इसलिए श्राद्ध सही समय पर किया जाना बहुत जरूरी माना गया है। तो आइए जानते हैं कि किस समय किया गया श्राद्ध अनंत फलदायी साबित होता है।
कुतप-काल में ही करने चाहिए पितरों के लिए श्राद्ध कर्म
पितृ पक्ष में प्रत्येक दिन यानी सोलह दिन तक एक ही समय पर श्राद्ध कर्म करना चाहिए और ये समय होता है कुतप बेला । कुपत बेला दिन का आठवां प्रहर होता है और श्राद्ध के लिए यही मुहूर्त उत्तम होता है। कुपत काल अपरान्ह 11:36 मिनट से 12:24 मिनट तक होता है और यही समय श्राद्ध कर्म के विशेष शुभ होता है। इसी समय पितृगणों के निमित्त तर्पण, पिंडदान के साथ ब्राह्मण और अन्य जीवों को भोजन कराना चाहिए।
गजच्छाया योग में श्राद्ध का अनंत गुना फल मिलता है
पुराणों में गजच्छाया योग में श्राद्ध कर्म करने से अनन्त फल प्राप्ति का उल्लेख भी दिया गया है। हालांकि गजच्छाया योग कई वर्षों के बाद ही बनता है और इसमें किए गए श्राद्ध से पितरों के वंशज को अक्षय फल की प्राप्त होती है। गजच्छाया योग तब बनता है, जब सूर्य हस्त नक्षत्र पर हो और त्रयोदशी के दिन मघा नक्षत्र होता है। यदि यह योग महालय (श्राद्धपक्ष) के दिनों में बन जाए तो अत्यंत शुभ होता है, लेकिन यदि गजच्छाया योग न हो तो श्राद्ध केवल कुपत बेला में ही करें।
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