आश्विन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर अकाल मृत्यु प्राप्त आत्माओं की संतुष्टी और मुक्ति के लिए वैतरणी में स्नान कर तर्पण का विधान होता है। तपर्ण के बाद गोदान करने से आत्माओं को मुक्ति मिलती है। वैतरणी देव नदी मानी गई हैं और मान्यता है कि इसमें स्नान करने से पितरों को मृतलोक से मुक्ति मिलती है अथवा वहब स्वर्ग में वास करते हैं। वैतरणी में तर्पण करने से 21 कुलों का उद्धार होता है। श्राद्ध और तर्पण के बाद मार्कंडेय महादेव मंदिर का दर्शन-पूजन जरूर करना चाहिए।
कई बार मनुष्य अपने जीवन या समस्याओं से आजिज आकर मौत का गले लगा लेता है, ऐसे में उसकी आयु पूरी नहीं हो पाती। मान्यता है कि यदि कोई आत्महत्या कर ले अथवा किसी हादसे में उनकी जान चली जाए तो उस मृत आत्मा को तब तक शरीर की प्राप्ति नहीं होती जब तक वह अपनी आयु को पूरा नहीं कर लेता। हिंदू धर्म में पूर्णायु 70 वर्ष माना गया है। यदि कोई 70 वर्ष के बाद मरता है तो उसकी आत्मा को या तो मोक्ष प्राप्त होता है या उसे उसके कर्मों के अनुसार शरीर मिल जाता है, लेकिन अकाल मृत्यु वालों को अपनी आयु आत्मा के रूप में ही पूर्ण करनी पड़ती है।
ऐसे में ऐसी आत्माएं बहुत ही व्यथित और दुखी होती हैं, इसलिए ऐसी आत्माओं का श्राद्ध और तर्पण विशेष रूप से करना चाहिए। साथ ही इन आत्माओं को गया में जाकर मुक्ति के लिए बिठा दिया जाता है। चतुर्दशी के दिन ऐसी आत्माओं को विशेष शांति के लिए दान-पुण्य और श्राद्धकर्म करना चाहिए क्योंकि ये सबसे ज्यादा अतृप्त मानी गई हैं।
चतुर्दशी पर स्वाभाविक मृत्यु वालों का नहीं करना चाहिए श्राद्ध
भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को चतुर्दशी श्राद्ध के बारे में बताया था। उन्होनें बताया था कि जिस मनुष्य की स्वाभाविक मृत्यु न हुई हो उनका ही केवल श्राद्ध पितृ पक्ष की चतुर्दशी पर ही करना चाहिए। स्वाभाविक मौत मरने वालों का श्राद्ध इस दिन भूल कर भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे श्राद्धकर्ता को कई तरह के संकट के साथ आर्थिक तंगी और संतान से जुड़े कष्ट का सामना करना पड़ता है।
इस विधि से करें श्राद्ध
इस दिन हाथ में जौ,कुश,काला तिल और अक्षत और जल ले कर तर्पण दें। इसके बाद “ऊं अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये” मंत्र का जाप करें। इसके बाद पंचबलि कर्म करें और ब्राह्मण भोज कराएं।
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