धनतेरस पर धन के देवता कुबेर और देवी लक्ष्मी की पूजा के साथ देवताओं के चिकित्सक धन्वंतरि महाराज की पूजा भी की जाती है। इस दिन सुख, संपत्ति के साथ बेहतर स्वास्थ्य के लिए पूजा करने का विधान है। धनतेरस के दिन दीपदान का भी विशेष महत्व होता है। दीवाली की शुरुआत धनतेरस से ही होती है और इस दिन धातु की चीजें खरीदने का रिवाज है। हिन्दू धर्म में धनतेरस को यश, वैभव, कीर्ति सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला दिन माना गया है। इस दिन शाम के समय दीपदान करना बहुत ही शुभकारी माना गया है। इस दिन दीप जलाने का तरीका आम दिनों से अलग होता है। तो आइए जाने कि धनतेरस की पूजा कैसे की जाती है और दीप घर में कहां जलाना अनिवार्य होता है।
धनतेरस पर जलाएं घर में इन दो जगह पर 26 दीए
धनतेरस की शाम को मुख्य द्वार पर 13 और घर के अंदर 13 दीप जलाने चाहिए। याद रखें कि दीप सूर्यास्त के बाद ही जलाना है। दोनों ही जगह आप घी के दीये जलाएं और जलाने के बाद सभी ईश्वर से अपनी सेहत के साथ सुख, संपत्ति और ऐश्वर्य के लिए प्रार्थना करें।
दीपदान करते समय इन मंत्रों का करें जाप
भगवान कुबेर की कृपा पाने के लिए 'ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:' मंत्र का जाप सबसे ज्यादा लाभकारी माना गया है। जीवन में भोग-विलासिता की चीजों का सुख प्राप्त करने के लिए 'ॐ वैश्रवणाय स्वाहा:' मंत्र का जाप धनतेरस पर जरूर करना चाहिए।
धनतेरस के दिन ऐसे करें पूजा
धनतेरस का दीपदान घर की लक्ष्मी यानी स्त्री को करना चाहिए। इस दिन किसी भी धातु का बर्तन खरीदें और उसमें मिठाई भर कर ही घर मे प्रवेश करें और धनवंतरी देव, भगवान कुबेर और देवी लक्ष्मी के साथ गणपति जी को नए बर्तन में भोग लगाएं। धनतेरस के दिन ही दिवाली के दिन पूजा करने के लिए लक्ष्मी-गणेश जी की प्रतिमा खरीदनी चाहिए। मान्यता है कि सोने-चांदी या पीतल के बर्तन खरीदने से घर में सौभाग्य, सुख-शांति और स्वास्थ्य का वास होता है। पीतल भगवान धन्वंतरी का धातु है। इसलिए पीले रंग के धातु इस दिन खरीदना शुभ होता है।
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