भगवान शिव और माता पर्वती के पुत्र गणपति जी उनके विवाह के समय प्रथम पूजनीय थे, ये बात सुनने में बेहद रोचक है। इसके पीछे देवतागण का छुपा एक अद्भुत रहस्य आपको बताते हैं। गणेश जी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। शिव-पार्वती के विवाह में उनकी पूजा के बाद ही विधियां शुरू हुईं थी। ऐसे में यह संभव है कि लोग इस बात पर विश्वास न करें लेकिन आज जो सत्य आप जानेंगे उससे आपको भगवान गणपति के विवाह में मौजूद होने का पता चलेगा।
तुलसीदासजी जी के इस दोहे में भगवान गणपति के होने का ज्ञान होता है। तो सर्वप्रथम इस दोहे को जाने और फिर इस दोहे का मतलब समझते हैं।
मुनि अनुशासन गनपति हि पूजेहु शंभु भवानि।
कोउ सुनि संशय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।।
दोहे के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के समय ब्रह्मवेत्ता मुनियों के निर्देश पर गणपति की पूजा कराई गई थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि देवता यानी गणपति जी अनादि माने गए हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि भगवान गणपति अनादि काल से है और वह अज, अनादि व अनंत हैं। भगवान शिव के पुत्र गणेश जी जरूर थे, लेकिन वह अनादि गणपति के अवतार माने गए हैं। यही वजह है कि भगवान गणपति की पूजा शंकर और पार्वती जी के विवाह में हुई थी।
वेदों में भी है गणपति जी का उल्लेख
वेदों में भी गणपति जी का उल्लेख मिलता है। गणेश जी वैदिक देवता माने गए हैं, लेकिन उनका नाम वेदों में मिलता रहा है। हालांकि ये नाम गणेश न होकर ‘गणपति’ या ‘ब्रह्मणस्पति’ है। जो वेदों में ब्रह्मणस्पति हैं, उन्हीं का नाम पुराणों में गणेश है। ऋग्वेद एवं यजुर्वेद के मंत्रों में भी गणेश जी के इन नामों का उल्लेख मिलता है।
विघ्नतहर्ता भगवान गणेश की पूजा के लाभ
भगवान गणेश विघ्नहर्ता माने गए है वहीं वह रिद्धि और सिद्धि प्रदान करने वाले भी हैं। किसी भी शुभ कार्य से पूर्व गणपति जी की पूजा अनिवार्य होती है। शुभ कार्य बेहतर तरीके से संपन्न हो इसके लिए गणपति जी खुद तत्पर होते हैं। बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा करना सुख-समृद्धि का वास देता है। बुद्धवार के दिन शाम को स्नान कर ऋद्धि-सिद्धि सहित गणेश जी की पूजा करनी चाहिए और लाभ-क्षेम के स्वरुप दो स्वस्तिक बना कर गणेश जी व उनके परिवार को केसरिया, चंदन, सिंदूर, अक्षत और दूर्वा अर्पित करें।
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