Geeta Gyan: ईश्वर को ऐसे प्राप्त कर सकते हैं भक्त, गीता में बताया है श्री कृष्ण ने रहस्य

Geeta Gyan In Lock down Part 8: लॉकडाउन में आप भगवान का निरंतर स्मरण करें, पवित्र गीता का पाठ कर अपने जीवन को नई राह दिखा सकते हैं।

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Geeta Gyan In Lock down Part 8:  लॉकडाउन में गीता के जरिए जानिए कि मनुष्य पाप करने के बावजूद किस तरह से भगवान को प्राप्त कर सकता है। इसमें हम आपकी मदद करेंगे।

अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन।।

(गीता: अध्याय 08 श्लोक 08)

भावार्थ- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन! जो व्यक्ति सदैव अपना मन मेरे स्मरण में ही निरंतर लगाता है व बिना विचलित हुए भगवान के रूप में मेरा ध्यान लगाता है, ऐसा भक्त मुझको अवश्य प्राप्त होता है।

दार्शनिक व आध्यात्मिक व्याख्या-  इस श्लोक में परम ब्रम्ह व एक मात्र ईश्वर कृष्ण अपने स्मरण किये जाने की महत्ता के बारे में कह रहे हैं। भगवान को स्मरण करने में निरंतर मन को लगाए रखने से पहले मन श्री कृष्ण में लगता है, फिर वचन से नाम का जप या कीर्तन होगा ,उनकी महिमा का श्रवण होगा तथा सबसे बड़ी बात उसी अनुसार सत्कर्म होगा।

इस प्रकार मन, वचन व कर्म से आप ईश्वर से जुड़ जाएंगे। इसका अभ्यास करते रहना चाहिए। इससे भगवान की भक्ति प्राप्त करने में बहुत सहायता मिलेगी। यहां पुरुषं का उल्लेख है। इसका अर्थ भोक्ता है। कृष्ण अपने विभिन्न्न स्वरूपों में परम भोक्ता है। मन बहुत चंचल है। मन को एकाग्र करना इतना आसान नहीं है।

निरन्तर अभ्यास करते करते आपको भगवान का ध्यान व चिंतन आनंद प्रदान करना आरम्भ कर देगा। जिस चीज से हमको आनंद मिलता है जीव उसकी पुनरावृत्ति करता रहता है। अब आपको सांसारिक चीजों से विरक्ति होनी प्रारम्भ हो जाएगी व परमात्मा की भक्ति में आनंद आना आरम्भ हो जाएगा।

अब यहां कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति निरन्तर स्मरण करते हुए मेरे ही ध्यान व चिंतन मरण लगा रहता है वह मुझे प्राप्त होता है। इसका दर्शन यह है कि मृत्यु के समय हम जैसा चिंतन करते हैं हमारा पुनर्जन्म भी ठीक वैसा ही होता है यहां तो भगवान अपने कृष्ण लोक की बात कर रहे हैं।

वर्तमान समय में इसका अनुकरणीय अर्थ-
भय व अनिश्चितता के इस वातावरण में हमारा मन भयाक्रांत हैं। हम सब अनजाने भविष्य से भयभीत हैं। इस समय इधर उधर की बातों को छोड़कर यदि केवल भगवान का ध्यान लगाया जाए। उनकी भक्ति की जाय। उनका ही चिंतन किया जाए।

तन व मन उनके स्मरण व प्रेम में मदमस्त रहे। समग्र चिन्तन का एकाग्र बिंदु परमपिता परमेश्वर ही हो तो हम भयमुक्त हो जाएंगे तथा सबसे बड़ी बात यह रहेगी कि परमात्मा हमारी रक्षा भी करेंगे, यह निश्चित है क्योंकि अब हमने अपने आपको उनको समर्पित कर दिया है।

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