Govardhan Puja 2021 Date, Puja Timings: पुलस्त ऋषि ने गुस्से में दिया गोवर्धन महाराज को श्राप, जानिए गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त इतिहास और महत्व

Govardhan Puja 2021 Date, Time, Puja Muhurat in Hindi:इस बार गोवर्धन पूजा 5 नवंबर 2021, शुक्रवार को है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ा था। जानिए इतिहास, महत्व और पौराणिक कथा।

Govardhan Puja 2021
Govardhan Puja 2021 
मुख्य बातें
  • गोवर्धन पूजा का पावन पर्व 5 नवंबर 2021, शुक्रवार को है।
  • इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ा था।
  • गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान श्री कृष्ण से है।

Govardhan Puja 2021 Date, Time, Puja Muhurat: दीपावली के अगले दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन गेंहू चावल जैसे अनाज और बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों के भोज तैयार किए जाते हैं और इसे भगवान श्री कृष्ण को अर्पित किया जाता है। 

धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ा था। इस बार गोवर्धन पूजा 5 नवंबर 2021, शुक्रवार को है। हिंदू पंचांग के अनुसार गोवर्धन पूजा का पावन पर्व 5 नवंबर 2021, शुक्रवार को है। इस दिन गाय के गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजा और परिक्रमा किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। आइए जानते हैं इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त।

गोवर्धन पूजा का समय (Govardhan Puja puja muhurat)
सनातन धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। गोवर्धन पूजा सुबह और शाम दोनों समय किया जाता है। इस दिन पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 28 मिनट से सुबह 7 बजकर 55 मिनट तक है। वहीं पूजन का दूसरा शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 16 मिनट से 5 बजकर 43 मिनट तक यानि 27 मिनट तक है।

द्वापर युग से हुई शुरुआत (Govardhan Puja Katha)
गोवर्धन पूजा भगवान श्री कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से शुरु हुई थी। गोवर्धन पूजा से पहले बृजवासी इंद्र देव की पूजा करते थे। एक बार भगवान श्री कृष्ण ने गोकुलवासियों को तर्क दिया कि इंद्र देव से हमें कोई लाभ प्राप्त नहीं होता, वर्षा करना उनका कार्य है और वो सिर्फ अपना काम करते हैं। जबकि गोवर्धन पर्वत गौधन का संवर्धन और संरक्षण करता है। जिससे पर्यावरण शुद्ध रहता है इसलिए इंद्रदेव की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए। 

ऐसे हुआ गोवर्धन महाराज का जन्म (Govardhan Puja Vrat Katha)
गर्ग संहिता के गिरिराज खंण्ड में वर्णित कथा के अनुसार गोवर्धन पर्वत का जन्म शालमली द्वीप के ऊपर हुआ था। एक बार एक काशी के विद्वान श्री पुलस्त ऋषि भ्रमण करत हुए शालमली द्वीप पर पहुंचे और द्रोणाचल के पुत्र गोवर्धन महाराज को देखकर मोहित हो गए। उन्होंने सोचा भोलेनाथ की पावन नगरी काशी में अगर मैं गोवर्धन को ले जाऊं तो वहां की शोभा और भी बढ़ जाएगी। पुलस्त ऋषि ने द्रोणाचल से दान स्वरूप गोवर्धन को मांग लिया।

नम हो गई आंखें (Govardhan Puja Katha in Hindi)
पुलस्त ऋषि को सुनने के बाद द्रोणाचल की आंखे नम हो गई, लेकिन उन्होंने ऋषि को अपना पुत्र दे दिया। गोवर्धन महाराज का शरीर आठ योजन लंबा, दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा था। ऐसे में उन्होंने कहा महाराज आप मुझे ऐसी अवस्था में किस प्रकार ले जाएंगे। पुलस्त ने कहा कि आप मेरे हांथ पर बैठ जाइए, जब तक काशी नहीं आएगा मैं तुम्हें हांथ से नीचे नहीं रखूंगा। यह सुन गोवर्धन महाराज ने कहा कि, मेरी प्रतिज्ञा है कि यदि आपने मुझे नीचे रख दिया तो उससे आगे मैं नहीं जाऊंगा, पुलस्त ऋषि ने गोवर्धन की इस शर्त को स्वीकार कर लिया।

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पुलस्त ऋषि ने गुस्से में आकर दिया था श्राप (Govardhan Puja Story in Hindi)
वृंदावन पहुंचते ही गोवर्धन महाराज को अहसास हुआ कि यहां भगवान श्री कृष्ण अवतार लेने वाले हैं। ऐसे में उन्होंने धीरे धीरे अपना वजन बढ़ाना प्रारंभ कर दिया। पुलस्त ऋषि अपनी प्रतिज्ञा को भूल चुके थे और उन्होंने गोवर्धन महाराज को नीचे रख दिया। इसके बाद पुलस्त ऋषि ने उन्हें पुन: उठाने का प्रयास किया लेकिन वह नाकामयाब रहे। गोवर्धन महाराज ने उन्हें उनकी प्रतिज्ञो को याद दिलाया। गोवर्धन महाराज के इस कृत्य से पुलस्त ऋषि ने गुस्से में आकर उन्हें श्राप दिया था कि प्रतिदिन तिल तिल खत्म होते जाओगे। इसी कारण गोवर्धन महाराज तिलभर तिलभर प्रतिदिन कम होते हैं।

गोवर्धन पूजा का महत्व (Govardhan Puja Significance)
गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान श्री कष्ण से होता है। इस दिन गाय के गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा और परिक्रमा की जाती है। हिंदू धर्म में गाय को धन की देवी मां लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। गोवर्धन पूजा करने से पर्यावरण शुद्ध रहता है और स्वास्थ्य संबंधी सभी परेशानियां दूर होती हैं। 

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ा था। बृजवासी इंद्रदेव की पूजा करते थे, लेकिन भगवान श्री कृष्ण के कहने पर गोकुलवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इस दिन से दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पावन पर्व मनाया जाता है।

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