गोवर्धन पूजा को अन्नकूट उत्सव के रूप में भी मनया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर भगवान इंद्र को पराजित किया था और उसी के उत्सव में यह पूजा होती है। इस बार गोवर्धन पूजा का मुहूर्त दोपहर 3 बजकर, 18 मिनट से लेकर 15:18:37 से शाम 5 बजकर, 27 मिनट तक रहेगा। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा होती है यानी दीपावली के ठीक अगले दिन यह पूजा होती है।
यह पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई। यह त्योहार ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार माना गया है। इस दिन मंदिरों में विविध प्रकार की खाद्य सामग्रियों से भगवान को भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पूजा के दिन बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाए जाते हैं। साथ ही इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराके धूप-चंदन तथा फूल माला पहनाकर उनकी पूजा की जाती है और गाय माता को मिठाई खिलाने के बाद उनकी आरती की जाती है और फिर प्रदक्षिणा के बाद भगवान कृष्ण की पूजा होती है।
गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है और फिर श्रीकृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों की रोली, चावल, फूल, जल, मौली, दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा और परिक्रमा की जाती है।
जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए 7 दिन तक लगातार गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा यानी छोटी उंगली पर उठा लिया था कऔर भगवान के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी थी। तब ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्रीकृष्ण ने जन्म ले लिया है उनसे बैर लेना उचित नहीं है। तब श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपने कार्य पर शर्मिंदा हुए और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की। भगवान श्रीकृष्ण ने सातवें दिन जब गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा तो गांव वालों ने खुशी और सम्मान में अन्नकूट उत्सव मनाया था। फिर भगवान के निमित्त भोग और नैवेद्य बनाया और 'छप्पन भोग' लगाकर उन्हें भोजन कराया था।
अन्नकूट पर्व मनाने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है साथ ही दारिद्र्य का नाश होकर मनुष्य जीवनपर्यंत सुखी और समृद्ध रहता है। ऐसा माना जाता है कि यदि इस दिन कोई मनुष्य दुखी रहता है तो वह वर्षभर दुखी ही रहेगा इसलिए हर मनुष्य को इस दिन प्रसन्न रहकर भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय अन्नकूट उत्सव को भक्तिपूर्वक तथा आनंदपूर्वक मनाना चाहिए।
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