Purushottam Purnima 2020: पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु को समर्पित है और यही कारण है कि पूर्णिमा पर लक्ष्मी-नारायण व्रत करने का विधान होता है। अधिकमास यानी पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली पूर्णिमा विशेष महत्व माना गया है। पुराणों में पुरुषोत्तम मास में ज्यादा से ज्यादा धार्मिक कार्य करने की सलाह दी गई है। माना जाता है कि इस मास में धार्मिक कार्य से मनुष्य को पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है। पुरुषोत्तम मास की पूर्णिमा पर लक्ष्मी नारायण व्रत और पूजन का विधान होता है।
पूर्णिमा पर लक्ष्मी-नारायण व्रत करने से मान्यता है कि मनुष्य की समस्त सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति होती है। इस व्रत को करने से धन, संपत्ति, सुख, वैभव में वृद्धि होती है। इस व्रत को गृहस्थ ही नहीं, अविवाहितों को भी करना चाहिए। इससे उन्हें सुयोग्य वर या वधु की प्राप्ति होती है। अधिकमास की पूर्णिमा को उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में वृद्धि योग और सर्वार्थसिद्धि योग और गुरुवार के संयोग ने इसे और भी प्रभावशाली बना दिया है।
पूर्णिमा के दिन लें व्रत का संकल्प:
लक्ष्मीनारायण व्रत वैसे तो पूरे परिवार को करना चाहिए। यदि सभी परिवार के सदस्य यह व्रत न कर सकें तो घर के मुखिया को ये व्रत जरूर करना चाहिए। पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर उगते सूर्य को जल दें और इसके बाद भगवान लक्ष्मीनारायण के सामने हाथ में अक्षत, जल, पूजा की सुपारी और जल लेकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद दोपहर में 12 बजे से पहले मुहूर्त में पूजा करें।
पूजा के लिए पूर्व ओर मुख कर बैठ जाएं और एक चौकी पर लाल और पीला वस्त्र बिछा कर लक्ष्मी-नारायण को आसन दें। पीला कपड़ा दाहिनी ओर बिछा कर विष्णु जी को स्थापित करें और लाल कपड़ा बाएं ओर बिछा का देवी लक्ष्मी को आसन दें। इसके बाद लाल, सफेद और पीले फूल प्रभु को अर्पित करें।
संभव हो तो देवी लक्ष्मी को कमल का पुष्प अर्पित करें। सुहाग की समस्त सामग्री देवी को अर्पित कर दें। इसके बाद मखाने की खीर और शुद्ध घी से बने मिष्ठान्न का नैवेद्य का भोग लगाएं। आरती के बाद लक्ष्मीनारायण व्रत की कथा सुनें। रात में पूर्णिमा के चांद का दर्शन-पूजन कर उसे भी जल अर्पित करें।
पूजन मुहूर्त (Adhik Maas Puja)
लक्ष्मीनारायण व्रत का पूजन अभिजित मुहूर्त में करना सबसे शुभ होगा। यह मुहूर्त 1 अक्टूबर को प्रातः 11.52 से 12.40 बजे तक रहेगा।
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