kumbh mela 2021 : महाशिवरात्रि पर होगा महाकुंभ का पहला शाही स्नान, जानें कुंभ स्नान का महत्व और कथा

Haridwar Mahakumbh 2021: हरिद्वार में इस साल महाकुंभ लगने जा रहा है। वैसे तो महाकुंभ 12 साल में लगता है, लेकिन इस बार 11 वें वर्ष में लग रहा है। जानें, महाकुंभ कब से शुरू है और किन तारीखों पर शाही स्नान होगा।

Haridwar Mahakumbh 2021, हरिद्वार महाकुंभ 2021
Haridwar Mahakumbh 2021, हरिद्वार महाकुंभ 2021 
मुख्य बातें
  • महाकुंभ का आरंभ महाशिवरात्रि के शाही स्नान से होगा
  • मेष राशि में सूर्य तथा कुंभ राशि में बृहस्पति होने पर महाकुंभ
  • चौथा और अंतिम शाही स्नान 27 अप्रैल को बैसाख पूर्णिमा पर होगा

हिंदू धर्म जिस तरह से चारधाम यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है, उसी तरह कुंभ स्नान का भी महत्व है। हर चार वर्ष में अर्धकुंभ लगता है और 12 वर्ष में महाकुंभ। इस साल हरिद्वार  में महाकुंभ लगने जा रहा है। हालांकि, ज्योतिष गणना और ग्रहों के फेर के कारण इस बार महाकुंभ 11 वें वर्ष लग रहा है। मान्यता है कि मनुष्य को अपने जीवन में कुंभ स्नान जरूर करना चाहिए, क्योंकि हिंदू धर्म में इस स्नान के बराबार किसी भी स्नान को नहीं माना गया है। तो चलिए आपको बताएं कि महाकुंभ कब से शुरू हो रहा है और किन तारीखों पर शाही स्नान होगा।

इसलिए हो रहा 11 वें वर्ष में महाकुंभ का आयोजन

मेष राशि में सूर्य तथा कुंभ राशि में बृहस्पति होने पर महाकुंभ का आयोजन होता है। 2022 में बृहस्पति कुंभ राशि में गोचर नहीं कर रहे हैं, जबकि 11वें साल में गुरु, कुंभ राशि में हैं। ज्योतिष गणना के आधार पर ही 2021 में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है।

कुंभ स्नान का महत्व

हिंदू धर्म में कुंभ स्नान को तीर्थ समान ही महत्व दिया गया है। माना जाता है कि कुंभ स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ स्नान से पितृ भी शांत होते हैं और अपना आर्शीवाद प्रदान करते हैं।

कुंभ मेला 2021 का शुभ मुहूर्त और तिथि (Kumbh mela 2021 Shahi Snan Dates and Time )

पहला शाही स्नान: 11 मार्च शिवरात्रि

दूसरा शाही स्नान: 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या

तीसरा मुख्य शाही स्नान: 14 अप्रैल मेष संक्रांति

चौथा शाही स्नान: 27 अप्रैल बैसाख पूर्णिमा

जानें, अन्य प्रमुख स्नान कब-कब होंगे

महाकुंभ में 4 शाही स्नान और 6 दिन प्रमुख स्नान होंगे। शाही स्नान के अलावा मकर संक्रांति (14 जनवरी), मौनी अमावस्या (11 फरवरी), बसंत पंचमी (16 फरवरी), माघ पूर्णिमा (27 फरवरी) और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (13 अप्रैल) और रामनवमी (21 अप्रैल) पर भी प्रमुख स्नान होंगे।

कुंभ से जुड़ी प्राचीन मान्यता (Kumbh mele ki katha)

कुंभ से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग से सभी प्रकार का ऐश्वर्य, धन, वैभव खत्म हो गया। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। विष्णुजी ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने की सलाह दी और कहा कि समुद्र मंथन से जो अमृत निकलेगा उसे पी कर सभी देवता अमर हो जाएंगे। देवताओं ने असुरों के राजा बलि को समुद्र मंथन के लिए तैयार किया। इस मंथन में वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया था। समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे। इन रत्नों में कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, महालक्ष्मी, वारुणी देवी, चंद्रमा, पारिजात वृक्ष, पांचजन्य शंख, भगवान धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे।

जब अमृत कलश निकला तो देवताओं के साथ असुर भी उसका पान करने को आतुर हो गए और इसक कारण देवताओं और दानवों में युद्ध होने लगा। इस दौरान कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। ये युद्ध 12 वर्षों तक चला था, इसलिए इन चारों स्थानों पर हर 12-12 वर्ष में एक बार कुंभ मेला लगता है। इस मेले में सभी अखाड़ों के साधु-संत और सभी श्रद्धालु यहां की पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।

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