Duryodhan Karna Mandir Uttarakhand: उत्तराखंड राज्य को देवभूमि कहा जाता है। देवी-देवताओं और आस्था का केंद्र ये राज्य खुद में कई पौराणिक कथाएं और रहस्य समेटे हुए हैं। उत्तारखंड के उत्तरकाशी जिले के में महाभारत के खलनायक दुर्योधन और कर्ण के मंदिर है। दुर्योधन का मंदिर नेतवार नामक जगह से करीब 12 किमी दूर ‘हर की दून’ रोड पर स्थित सौर गांव में है। वहीं, कर्ण का मंदिर नेतवार से डेढ़ मील दूर सारनौल गांव में है।
सारनौल और सौर गांव में कर्ण और दुर्योधन के मंदिर की कहानी पाताल रोक के राजा भुब्रूवाहन से जुड़ी है। भुब्रूवाहन एक महान योद्धा थे। वह कौरव और पांडव के बीच हुए महाभारत युद्ध का हिस्से बनना चाहते थे। कौरवों की तरफ से युद्ध में भाग लेने के लिए वह पाताल रोक से धरती पर आए थे लेकिन, भगवान श्री कृष्ण को अंदेशा था कि भुब्रूवाहन ही केवल अर्जुन के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है। ऐसे में उन्होंने पहले ही पाताल लोक के राजा को चुनौती दे दी।
भगवान श्री कृष्ण ने सिर किया धड़ से अलग
भगवान श्री कृष्ण ने भुब्रूवाहन को एक ही तीर से एक पेड़ के सभी पत्तों को छेदने की चुनौती दी। भगवान कृष्ण ने एक पत्ता तोड़कर अपने पैर के नीचे दबा दिया। पेड़ पर मौजूद सभी पत्तों को छेदने के बाद भुब्रूवाहन का तीर श्री कृष्ण के पैर की तरफ बढ़ रहा था, तभी उन्होंने अपना पैर हटा लिया। भगवान कृष्ण ने भुब्रूवाहन से निष्पक्ष रहने के लिए कहा। लेकिन, महाभारत के युद्ध से दूर रहना किसी भी योद्धा को मंजूर नहीं होता था। भगवान कृष्ण ने राजा का सिर धड़ से अलग कर दिया। भुब्रूवाहन के सिर को यहां एक पेड़ पर टांग दिया। यहीं से पाताल लोक के राजा ने महाभारत का पूरा युद्ध देखा।
आंसू से बन गई थी नदी
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार जब भी महाभारत के युद्ध में कौरव की रणनीति असफल होती थी, तब राजा भुब्रूवाहन जोर-जोर से रोने लगते थे। कहा जाता है कि भुब्रूवाहन के इन्हीं आंसूओं से यहां तमस या टोंस नाम की नदी बनी है। वहीं, भुब्रूवाहन आज भी रोते हैं।
नदी के पानी को आज भी कोई नहीं पीता था। दुर्योधन और कर्ण दोनों भुब्रूवाहन के बड़े प्रशंसक थे। इस कारण स्थानीय लोग आज भी दोनों उसकी वीरता को नमन करते हैं। भुब्रूवाहन के मित्र कर्ण और दुर्योधन के मंदिर बनाए हैं। दोनों इस इलाके के क्षेत्रपाल भी बन गए।
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