सभी भगवान की पूजा के लिए एक विशेष दिन निर्धारित किया गया है। निर्धारित दिन पर भगवान की पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है, लेकिन हर भगवान की पूजा में एक चीज जरूर समान्य होती है, वह यह कि यदि उनकी पूजा या व्रत मनुष्य कर रहा है तो उसे उस दिन उनकी व्रत कथा को जरूर सुनें। ऐसा माना जाता है कि यदि व्रत कथा का श्रवण व्रतीजन नहीं करते हैं तो व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है। यदि मंगलवार के दिन आप भगवान हनुमान के निमित्त व्रत करते हैं तो आपको इस दिन मंगलवार व्रत कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए।
यह है बंजरंगबली से जुड़ी मंगलवार की कथा (Hanuman ji ki katha)
प्राचीन समय में कुंडलपुर नगर में नंदा नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुनंदा के साथ रहता था। ब्राह्मण दंपत्ति को धन-धान्य आदि किसी भी चीज की कमी नहीं थी। बस कमी थी तो संतान की। दंपति की कोई संतान नहीं थी, इसलिए वह हमेशा दुखी रहा करते थे। संतान प्राप्ति के लिए एक दिन ब्राह्मण हनुमान जी की पूजा-अर्चना के लिए वन की ओर चले गए और ब्राह्मणी घर पर ही बजरंगबली की पूजा-अर्चना करने लगी। ब्राह्मण की पत्नी ने मंगलवार व्रत रखना शुरू कर दिया और शाम को भोग बनाकर हनुमान जी को अर्पित करने के बाद स्वयं भी प्रसाद ग्रहण कर लेती, लेकिन एक दिन मंगलवार को कोई और व्रत पड़ गया और वह ब्राह्मणी बजरंगबली का व्रत न कर उस व्रत को ही कर के रह गई। शाम को उसने प्रसाद भी नहीं बनाया। वह अपने मन में ये प्रण लेकर सो गई कि अगली मंगलवार तक वह जब तक हनुमान जी को भोग नहीं लगा लेती वह कुछ भी नहीं खाएगी। ब्राह्मण की पत्नी 6 दिन तक भूखी-प्यासी पड़ी रही। मंगलवार के दिन वह मूर्छित हो गई। तब बजरंगबली उसकी श्रद्धा और निष्ठा को देखकर बेहद प्रसन्न हुए और उसे दर्शन दिया और उससे बोले की वह उसके व्रत-तप से बेहद प्रसन्न हैं और उसे वह एक सुंदर बालक दे रहे हैं, जो तुम्हारी बहुत सेवा करेगा और हनुमान जी अपने बाल रूप को दर्शन देकर अन्तर्धान हो गए। सुंदर बालक पाकर ब्राह्मणी बहुत खुश हुई। उसने बालक का नाम मंगल रखा।
कुछ वक्त बाद ब्राह्मण जब वन से लौटकर आया तो उसने अपने घर में एक सुंदर बालक देखा तो उसने अपनी पत्नी से पूछा कि यह बालक कौन है? पत्नी ने कहा कि मंगलवार को व्रत करने से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने मुझे बालक दिया है। पत्नी की बात सुनकर ब्राह्मण को विश्वास नहीं हुआ। एक दिन ब्राह्मण कुएं से पानी भरने चला तो उसकी पत्नी ने कहा कि मंगल को भी साथ ले जाओ। ब्राह्मण बालक को अपने साथ ले गया लेकिन जब वापस लौटा तो बालक उसके साथ नहीं था, क्योंकि पानी भरने के बाद मंगल को नाजायज मानते हुए ब्राह्मण ने उसे कुंए में फेंक दिया था। ब्राह्मण की पत्नी ने मंगल के बारे में पूछा तो ब्राह्मण कुछ जवाब देता उससे पहले मंगल घर में मुस्कुराता हुआ आ गया। यह देख ब्राहमण आश्चर्यचकित हो गया। उसी रात बजरंगबली ने ब्राह्मण को स्वप्न दिया कि यह बालक मेरा बाल रूप है और तेरी पत्नी की भक्ति से प्रसन्न होकर मैंने उसे वरदान स्वरूप दिया है। इसके बाद ब्राह्मण को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने बजरंगबली के साथ ही अपनी पत्नी और पुत्र से भी क्षमा मांगा और खुशी पूर्वक जीवन जीने लगे। इसलिए जो मनुष्य मंगलवार व्रत कथा को जो पढ़ता या सुनता है उसके भी कष्ट दूर हो जाते हैं और बजरंगबली की कृपा प्राप्त होती है।
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