नवरात्र का पहला दिन देवी शैलपुत्री का होता है। बैल अथवा वृषभ पर सवार देवी शैलपुत्री को वृषारूढ़ा, सती अथवा उमा के नाम से भी जाना जाता है। देवी शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय के घर जन्मी थी, लेकिन उनका जन्म शैल या पत्थर से हुआ था। देवी की पूजा मनुष्य को जीवन में स्थिरता प्रदान करती है। देवी शैलपुत्री की विधिवत आराधना से वैवाहिक जीवन सुखमय होता और घर परिवार में खुशहाली आती है। माता दाहिने हाथ में त्रिशूल शत्रुओं का नाश करने का प्रतीक है। देवी के बाएं हाथ में कमल का फूल रहता है जो शांति तथा ज्ञान का प्रतीक है।
आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को चित्रा व वैधृति नक्षत्र मिल रहे हैं। इस अवधि में कलश स्थापना नहीं की जा सकती है। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल 11:39 से दोपहर 12:22 तक है। चित्रा 02:21तक है। 02:21 के बाद सायंकाल 04:15 से 05:43 तक मीन लग्न में कलश स्थापित कर सकते हैं। लेकिन 11:39 से 12:22 तक का अभिजीत मुहूर्त ही सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त होगा। इसी दौरान मां शैलपुत्री का पूजन भी करें।
देवी की पूजा करने से घर-परिवार में संपन्नता और खुशहाली आती है। संतान और दांपत्य सुख की प्राप्ति होती है। उनकी पूजा से मनुष्य को स्थिरता मिलती है और चंद्र से जुड़े कोई भी दोष हो तो उससे मनुष्य को मुक्ति मिलती है। सुयोग्य वर और वधू पाने के लिए देवी की पूजा जरूर करनी चाहिए। अच्छी सेहत और हर प्रकार के भय से देवी मनुष्य को मुक्त करती हैं।
देवी को सफेद रंग प्रिय है। देवी को सफेद रंग का ही भोग लगाना चाहिए। सफेद मिठाई या खीर के साथ मेवे का भोग लगाएं।
स्नान के बाद घर के मंदिर को साफ कर माता के लिए चौकी या पीढ़ा लगाएं और उस पर लाल रंग का आसन रखें। इसके बाद देवी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और कलश स्थापना करें। कलश के ऊपर पान के पत्ते, नारियल और स्वास्तिक भी बनाएं। उसके बाद देवी के समक्ष धूप-दीप जलाएं और माला अर्पित करें।क्योंकि देवी की पूजा करने से पूर्व समस्त तीर्थ, नदियों और दिशाओं का आह्वाहन करें और इसके बाद देवी की पूजा करें। देवी के मंत्र पढ़ें, फिर देवी शैलपुत्री की कथा सुनें। कथा के समाप्त होने के बाद आरती करें। अब प्रसाद को बांटें और रात में भी देवी के समक्ष कर्पूर का धूप करें। सुबह-शाम दीप जरूर जलाएं।
नवरात्रि पहले दिन शैलपुत्री पूजन का फूल (Navratri first Day 2020 Puja Flower Color)
इस दिन देवी को सफेद फूल चढ़ाना चाहिए। इसमें आप गुलाब, चमेली जैसी फूल शामिल कर सकते हैं।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:।
या
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
मां शैलपुत्री का निर्भय आरोग्य मंत्र (Navratri first Day Shailputri Puja Arogya Mantra)
विशोका दुष्टदमनी शमनी दुरितापदाम्। उमा गौरी सती चण्डी कालिका सा च पार्वती।।
मां शैलपुत्री स्तोत्र पाठ (Navratri first Day Shailputri Stotram)
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
देवी शैलपुत्री सती के नाम से भी जानी जाती हैं, क्योंकि वह अपने ही पिता से नाराज हो कर हवन कुंड में सती हो गई थीं। क्यों? आइए जानें।
एक बार राजा प्रजापति ने यज्ञ किया तो उन्होंने सारे ही देवताओं को यज्ञ के लिए निमंत्रित किया, लेकिन भगवान शंकर को नहीं बुलाया। जब देवी को यह ज्ञात हुआ कि उनके पिता यज्ञ कर रहे तो वह उनके यहां जाने को व्याकुल हो उठीं और भगवान शंकर से चलने के लिए कहा, लेकिन शंकरजी ने कहा कि, उनके पिता ने सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं होगा।
इसके बाद भी देवी पिता के यहां जाने के लिए जिद्द करती रहीं तब शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। देवी जब घर पहुंचीं तो सिर्फ उनकी मां ने उनका आदर-सम्मान किया और स्नेह दिया। इसके अलावा उनके पिता और बहनों ने भी उनका उपहास किया। सभी का भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव दिखा। राजा दक्ष ने उनके पति महादेव के लिए अपमानजनक वचन कहे। इससे देवी को बहुत ठेस पहुंची। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और यज्ञ कुंड की अग्नि में ही वह कूद गईं। इस दुख से भगवान शंकर इतने व्यथित हो गए कि उन्होंने यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री बनी और शैलपुत्री कहलाईं। तब देवी शैलपुत्री का विवाहभी भगवान शंकर से हुआ।
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
देवी की आरती सुबह और संध्या के समय भी जरूर करनी चाहिए। शाम के समय धूप-दीप के साथ ये आरती करें।
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