Pitru Paksh Shashthi Shradh 2020 : 16 वेदी पर होता है षष्ठी श्राद्ध, करें पितृदेव चालीसा का जाप

Pitru Paksh Shashthi Shraddha : आश्विन कृष्ण पक्ष की षष्ठी पर श्राद्ध उन लोगों का किया जाता है, जिनकी मृत्यु किसी भी महीने में इस तिथि पर हुई हो। इस दिन पितरों के श्राद्ध के बाद पितृदेव चालिसा का पाठ कर लें।

Pitru Paksh Shashthi Shraddha, पितृ पक्ष षष्ठी श्राद्ध
Pitru Paksh Shashthi Shraddha, पितृ पक्ष षष्ठी श्राद्ध 
मुख्य बातें
  • पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए रोज करना चाहिए तर्पण
  • पितृपक्ष में पितृ देव चालिसा का पाठ हर किसी को करना चाहिए
  • इस चालिसा के पाठ से सभी पितरों को मिलती है शांति

पितृपक्ष पर पितरों का श्राद्ध करना न केवल उनकी आत्मा की शांति के लिए होता है, बल्कि इससे हमारे जीवन में भी सुख-शांति और तरक्की होती है। पितृपक्ष में वैसे तो हर दिन ही पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए, लेकिन उस दिन विशेष रूप से श्राद्ध करना चाहिए जब उनकी मृत्यु की तिथि आती है। पितृपक्ष की पष्ठी का श्राद्ध का विधान वैसे तो विष्णुपद मंदिर स्थित सोलह वेदी नामक तीर्थ पर करने का विधान है, लेकिन ये श्राद्ध गार्हपत्याग्नि पद, आह्वाग्नि पद, सम्याग्नि पद, आवसध्याग्नि पद व इंद्रपद नामक पांच तीर्थों पर भी किया जाता है। मान्यता है कि यहां किया गया श्राद्ध पितरों को शांत करता है। यदि आप इन स्थानों पर श्राद्ध नहीं भी कर पा रहे तो आप कहीं भी इसे कर सकते हैं।

पितरों के श्राद्ध के बाद क्यों पढ़ना चाहिए पितृदेव चालीसा

पितृ देव चालीसा का पाठ पितृपक्ष में रोज करना चाहिए। यदि आपके पास समय नहीं तो पितरों को रोज जल देने के बाद इस चालिसा को पढ़ लें। जिस तिथि पर पितरों का श्राद्ध किया जाता है उसके बाद पितृदेव चालीसा जरूर पढ़ना चाहिए। मान्यता है कि पितृ चालिसा पढ़ने से पूरे कुल के पितरो को शांति मिलती है। जिन पितरों की आत्मा को शरीर नहीं मिला है, वह सब इस चालीसा के जाप से शांति पाती हैं। इसलिए इस चालीसा को जरूर पढ़ें। केवल पितृपक्ष ही नहीं हर अमावस्या के दिन इसे पढ़ना चाहिए। उन लोगों के लिए ये बहुत कारगर उपाय है जिनकी कुंडली में पितृदोष हो।

पितृ देव चालीसा

|| दोहा ||

हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद,

चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ ।

सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी ।

हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी । ।

|| चौपाई ||

पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर ।

परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा ।

मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे ।

जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं ।

चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा ।

नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का ।

प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते ।

झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे ।

प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा ।

पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी ।

तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे ।

नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी ।

छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते ।

तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी ।

भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे ।

ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे ।

सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी ।

शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते ।

जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा ।

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई ।

हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा ।

गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की ।

बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा ।

चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते ।

जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते ।

धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है ।

श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी ।

निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई ।

तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई ।

चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी ।

नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई ।

जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत ।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी ।

जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे ।

सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे ।

तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे ।

सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई ।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई ।

मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ।

अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ।

|| दोहा ||

पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम ।

श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम ।

झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान ।

दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान । ।

जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम ।

पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान । ।

पितृदेव चालिसा का पाठ पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के साथ उनके वंशजों का भी कल्याण करता है।

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