आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि पर सात ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ ही सोलह वेदी नामक तीर्थ पर श्राद्ध करने का विधान हैं। यहां छह वेदियों पर पिंडदान किया जाता है। यह छह वेदियां हैं, अगस्त पद, क्रौंच पद, मतंग पद, चंद्र पद, सूर्य पद और कार्तिक पद। मान्यता है कि इन छह वेदियों पर पिंडदान करने से पितरों को शांति भी मिलती है और उनके जन्म-जन्मांतर का पाप मिट जाते हैं।
भागवत गीता में आत्मा की अमरता के बारे में विस्तार से लिखा है। आत्मा का संयोग जब तक परमात्मा से नहीं होता है, तब वह विभिन्न योनियों में भटकती रहती है। इस अवस्था को अघम कहते हैं। अघम में आत्मा को संतुष्टी केवल श्राद्ध से मिलती है। इसलिए श्राद्ध बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।
सप्तमी पर ऐसे करें श्राद्ध
सप्तमी पर सात ब्रह्मणों को भोजन कराना चाहिए। कुश के आसन पर बैठ कर पितृ के निमित भगवान विष्णु के पुरुषोत्तम स्वरूप की आराधना करनी चाहिए। साथ ही इस दिन गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। साथ ही इस विशेष पितृ मंत्र ‘ऊं पषोत्तमाय नम:’ का जाप जरूर करना चाहिए।
सप्तमी श्राद्ध विधि
पितृपक्ष में पितृतर्पण और श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध करने के लिए हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें और इसके बाद इस मंत्र को पढ़े,
“ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।”
ऐसे करें पिंडदान
पके हुए चावल में गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद मिलाकर पिंड बने पिंडा बना लें। ये पितरों का शरीर माना गया है। इसे बाद पिंडे पर काला तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण करें।
ब्राह्मण भोज और पंचबलि कर्म
पिंडदान के बाद के बाद पंचबली कर्म और ब्राह्मण भोज कराया जाता है। पंचबलि कर्म में गाय, कुत्ते, कौवे और चीटी को भोजन दिया जाता है। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है।
पितृपक्ष में कभी भी आपके द्वार कोई कुछ मांगने आए तो उसे कभी खाली हाथ न लौटाएं। इन दिनों में आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं।इसलिए घर आए किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करना चाहिए।
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