आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर गया के विष्णुपद के 16 वेदी नामक मंडप में 14 स्थानों के साथ ही पास के मंडप में दो स्थानों पर पिंडदान करने का विधान है। सोलह वेदी तीर्थ में शेष पांच वेदियों क्रौंच पद वेदी, मतंग पद वेदी, अगस्त पद वेदी, इंद्र पद वेदी व कश्यप पद वेदी शामिल है। इसमें से कश्यप पद वेदी पर पिंडदान को श्रेष्ठ माना गया है। प्राचीन काल में भारद्वाज मुनि ने कश्यप पद पर श्राद्ध किया था। इसलिए इस वेदी पर श्राद्धकर्म का फल दोगुना प्राप्त होता है।
पिता का श्राद्ध कौन कर सकता है
शास्त्र में पुत्र को ही पिता के श्राद्ध का अधिकार होता है, लेकिन पुत्र न हो तो ये कार्य नाती या नाती के अभाव में कोई भी इसे कर सकता है। यदि कई पुत्र हों तो पिता के श्राद्धकर्म का अधिकार बड़े या सबसे छोटे पुत्र को होता है। यदि पुत्र न हो तो पत्नी भी पति का श्राद्ध कर सकती है। अष्टमी का श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता सुख-समृदिर्ध व दीर्घायु को प्राप्त करता है।
अष्टमी श्राद्ध विधि
अष्टमी के श्राद्ध में आठ ब्राह्मणों को भोजन खिलाने का विधान है। पिंडदान कर तर्पण करने के बाद श्राद्धकर्म करना चाहिए। इसके लिए पंचबलि कर्म के साथ ब्राह्मणों को भोजन करना और उनके लिए कच्चे अनाज आदि का दान करना शामिल होता है। इस दिन कुश के आसन पर बैठ कर पिता के निमित भगवान विष्णु के गोविंद स्वरूप की पूजा करनी चाहिए और उसके बाद गीता के आठवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। साथ ही पितृ मंत्र का जाप कर क्षमा याचना करना चाहिए। अष्टमी के श्राद्ध भोजन में लौकी की खीर, पालक, पूड़ी, फल-मिठाई के साथ लौंग-इलायची और मिश्री जरूर शामिल करना चाहिए।
अष्टमी पितृ मंत्र : ऊं गोविंदाय नम: ।
अष्टमी पर श्राद्ध करने वाले श्राद्धकर्ता को पर बरसता है पितृ का आशीर्वाद। श्राद्ध करने से परिवार में सुख और समृद्धि का वास होता है।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (Spirituality News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल