मुंबई: भाद्र पद की शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत मनाया जाता है। यह गणेश चतुर्थी के अगले दिन और हरतालिका तीज व्रत के ठीक दूसरे दिन होता है। इस साल यानी 2020 में यह व्रत 23 अगस्त को मनाया जा रहा है। ऋषि पंचमी खौस तौर पर महिलाओं के लिए अटल सौभाग्यवती व्रत माना जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा कहते हैं कि इस मौके पर अगर महिलाएं गंगा स्नान कर लें तो उसका फल कई सौ गुणा बढ़ जाता है।
इस दिन देवी-देवताओं की पूजा नहीं की जाती है बल्कि पंचम तिथि को सप्तऋषियों की पूजा होती है। माना जाता है कि यह व्रत पूरे श्रद्धा भाव से किया जाए तो जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। ऋषि पंचमी व्रत में सप्तऋषि की विधि विधान से पूजा की जाती है। एक नजर सप्तऋषि पूजा के लिए महत्वपूर्ण मंत्रों और व्रत की कथा पर।
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।।
गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।।
भविष्यपुराण की कथा के अनुसार, विदर्भ देश में एक उत्तक नाम का ब्राह्मण अपनी पति व्रता पत्नी सुशीला के साथ रहता था। उत्तक के परिवार में एक पुत्र और पुत्री भी थे। विवाह योग्य होने पर ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का विवाह सुयोग्य वर के साथ कर दिया लेकिन कुछ दिनों बाद उसके पति की अकाल मृत्यु हो गई और उत्तक की पुत्री वापस अपने मायके लौट आई।
एक दिन विधवा पुत्री अकेले सो रही थी तभी उसकी मां देखती है कि पुत्री के शरीर में कीड़े उत्पन्न हो रहे हैं। अपनी कन्या की यह दशा देखकर सुशीला व्यथित हो गई। वह अपने पति के पास पुत्री को लेकर गई और बोली कि हे प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति कैसे हुई?
उत्तक ब्राह्मण ने ध्यान लगाने के बाद पूर्वजन्म के बारे में देखा कि उनकी पुत्री पहले भी ब्राह्मण की बेटी थी लेकिन राजस्वला के दौरान ब्राह्मण की पुत्री ने पूजा के बर्तन छू लिए और इस पाप से मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया। जिसकी वजह से इस जन्म में कीड़े पड़े। फिर पिता के कहे अनुसार विधवा पुत्री ने इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए पंचमी का व्रत किया और उसे इससे उसे अटल सौभाग्य की प्राप्ति हुई।
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