संतों में सांई सबसे सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं। कहते हैं जिस तरह से बजरंगबली अपने भक्तों के कष्ट दूर करने को व्याकुल हो जाते हैं, ठीक उसी तरह साई से भी अपने भक्तों का कष्ट नहीं देखा जाता। ऐसा हनुमानजी और साईं के बीच आपसी नाते के कारण ही माना जाता है। मान्यता है कि हनुमानजी जहां होते हैं, साईं का वास भी वहीं होता है। साईं के साथ हनुमानजी हमेशा रहते हैं और यही कारण हैं कि साईं के समान के साथ बजरंगबली के होने के कई सबूत भी मिले हैं। तो आइए आज जानें की साईं और हनुमानजी के बीच कैसा नाता रहा है।
जानें, साईं और बजरंगबली के बीच का संबंध
1. शिरडी में सांई समाधि परिसर में ही बजरंगबली का मंदिर स्थापित है। यहां बजरंगबली की दक्षिणमुखी प्रतिमा विराजमान है। मान्यता है कि साईं हनुमान जी के दर्शन के बाद ही अपना कोई कार्य शुरू करते थे और यही कारण है कि हर साईं मंदिर में हनुमान जी का मंदिर भी जरूर होता है।
2. सांई के जन्मस्थली पाथरी में साईं मंदिर स्थापित है और इस मंदिर में साईं के वह सारे ही सामान रखें हैं जिसे वह प्रयोग किया करते थे। इनमें बर्तन, पुरानी वस्तुएं, घंटी और देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं। इन मूर्तियों में हनुमान जी की एक मूर्ति है। यह मूर्ति बहुत पुरानी है। माना जाता है कि साईं इन्हीं की पूजा किया करते थे।
3. साईं का परिवार बजरंगबली का भक्त था और इस बात की पुष्टि शशिकांत शांताराम गडकरी की पुस्तक 'सद्गुरु सांई दर्शन' में होती है। साईं के पांच भाई थे। रघुपत भुसारी, दादा भूसारी, हरिबाबू भुसारी, अम्बादास भुसारी और बालवंत भुसारी थे। सांई, गंगाभाऊ और देवकी के तीसरे पुत्र थे। उनका नाम हरिबाबू भूसारी था। यही कारण है कि साईं भी बजरंगबली के भक्त थे।
4. सांई के जन्मस्थली से कुछ दूर सांई बाबा का पारिवारिक मारुति मंदिर भी है। मारुति अर्थात हनुमानजी। हनुमान जी को साईं के परिवार के कुल देवता के रूप में पूजा रहा है। यह मंदिर खेतों के बीच है और मंदिर में एक गोल पत्थर स्थापति है। हनुमानजी का ये प्रतिकात्मक प्रतिमा बताई जाती है। साथ ही पास में एक कुआं है। कहा जाता है यहीं पर साई स्नान कर मारुति का पूजन करते थे। सांई इसी हनुमान मंदिर में ही अपना समय व्यतीत करते थे।
5. कहा जाता है कि सांई का जन्म भुसारी परिवार में हुआ था। उनके पारिवारिक देवता कुम्हार बावड़ी के श्री हनुमान ही थे और वे पाथरी के बाहरी इलाके में विराजते थे। कहा जाता है कि सांई अपने अंतिम समय में राम विजय प्रकरण कर ही प्राण त्यागे थे।
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