शक्तिपीठ में देवी माता के दर्शन का अपना अलग ही महत्व होता है। शक्तिपीठ देवी के जागृत मंदिर माने जाते हैं, लेकिन देश में अब तक केवल 51 शक्तिपीठ की ही जानकारी है, बाकि के चार शक्तिपीठ को आज तक कोई भी नहीं ढूंढ पाया है। माना जाता है कि ये शक्तिपीठ आज भी रहस्यमयी हैं अथवा इन तक कोई पहुंच नहीं सका है। मान्यता है कि शक्तिपीठ वहां-वहां स्थापति हुए जहां-जहां देवी सती के अंग, गहने और कपड़े गिरे थे।
शक्तिपीठ वहां बनें जहां-जहां माता सति के अंग गिरे। जिस जगह उनके अंग का जो भाग गिरा वह पवित्र तीर्थ स्थल बन गए। दरअसल जब देवी सती अपने पिता से नाराज हो कर हवन कुंड में प्राण त्यागने के लिए कूद गईं तब शंकर जी ने उनका शव उसमें से निकाल कर अपने कंधे पर रखा और इधर-उधर घूमने लगे। तब भगवान विष्णु ने शिव जी के क्रोध से दुनिया को बचाने के लिए अपने चक्र से सति के शरीर के टुकड़े कर दिए और जहां-जहां माता सती के शरीर के टुकड़े, गहने या कपड़े गिरते गए, वहां शक्तिपीठ बनते गए।
रत्नावली शक्तिपीठ
देवी सती का जहां कंधा गिरा वहां भी शक्तिपीठ बना लेकिन इस शक्तिपीठ का पता नहीं चल सका है। भक्तों का मानना है कि देवी का यह अंग चेन्नई के आस-पास गिरा था लेकिन वास्तविक रूप में इस बात की जानकारी अब तक नहीं हैं कि रत्नावली शक्तिपीठ कहां है।
कालमाधव शक्तिपीठ
देवी सती के बायां कूल्हा जहां गिरा था उस स्थान को कालमाधव शक्तिपीठ का नाम दिया गया, लेकिन इस शक्तिपीठ की खोज कोई नहीं कर पाया है। मान्यता है कि इस शक्तिपीठ पर देवी सती कालमाधव और शिव असितानंद नाम से विराजित हैं।
लंका शक्तिपीठ
देवी सती का विशेष आभूषण जहां गिरे वह लंका शक्तिपीठ के नाम से जाने गए, लेकिन शास्त्रों में वर्णित इस शक्तिपीठ को भी कोई नहीं खोज सका है। ये अब भी रहस्य में है।
पंचसागर शक्तिपीठ
शक्ति का चौथा पीठ जिसके बारे में आज भी कोई नहीं जान सका वह है पंचसागर शक्तिपीठ। पंचसागर शक्तिपीठ में देवी सती का निचला जबड़ा गिरा था। इस स्थान पर देवी सती को वरही कहा जाता है।
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