वेदों और पुराणों में सूर्य देव को प्रमुख देवों में से एक माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य देव अपने भक्तों को कभी उदास नहीं करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य देव सृष्टि के आत्मा हैं क्योंकि उनकी वजह से ही जगत में जीवन है। मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव की पूजा करना बहुत फलदायक माना गया है। रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित है इसलिए बहुत लोग इस दिन सूर्य देव की पूजा करते हैं। सूर्य देव की पूजा करते समय सूर्य चालीसा पढ़ने का विशेष महत्व है।
यहां जानिए सूर्य चालीसा की लिरिक्स और उसका महत्व।
पढ़ें संपूर्ण सूर्य चालीसा हिंदी में
दोहा:
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।
चौपाई:
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्त्रांशु सप्ताश्र्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अंबरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
सहस्त्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, गेखि पुरन्दर लज्जित होते।
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषास रवि,
आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नम: कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को नमस्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारन करते. सहस जनम के पातक टरते।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।
अर्क शीशा को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजस: कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
सहस्त्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
अस जोजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मंद सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्र्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,
पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।
दोहा:
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख संपत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।
सूर्य चालीसा पाठ का महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि सूर्य पूजा के साथ सूर्य चालीसा का पाठ करने से कुंडली में सूर्य और अन्य ग्रहों के दोष से मुक्ति मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य चालीसा का पाठ करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और कृपा-दृष्टि बरसाते हैं। सूर्य चालीसा का पाठ करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और हर एक क्षेत्र में सफलता मिलती है।
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