नई दिल्ली. देशभर में सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा की जा रही है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भी रोजाना भगवान शिव की सुबह भस्म आरती की जाती है। दरअसल इस मंदिर में भगवान शिव के अघोरी स्वरूप को महत्व दिया जाता है।
भगवान शिव की भस्म आरती महाकाल का श्रृंगार है और उन्हें जगाने की विधि है। इसमें भगवान शिव के शिवलिंग का चिता की ताजी भस्म से श्रंगार किया जाता है। ये आरती रोजाना सुबह चार बजे की जाती है। पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली भस्म चिता की ताजी राख होती है।
महाकाल मंदिर में होने वाली आरती को बंद कमरे में केवल मंदिर के पुजारी करते हैं। कुछ कारणों से अब इस आरती के लिए चिता की राख का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। पूजा को देखने के लिए पहले रजिस्ट्रेशन भी करवाना पड़ता है।
इसलिए की जाती है भस्म आरती
भस्म आरती का जिक्र सबसे पहले शिवपुराण में मिलता है। दरअसल माता सती के अग्नि समाधि का संदेश मिलते ही भगवान शिव क्रोधित हो गए थे। क्रोध में उन्होंने अपना मानसिक संतुलन खो दिया और माता सती के मृत शरीर को लेकर इधर-उधर घूमने लगे। भगवान शिव की ये हालत जब भगवान विष्णु ने देखा तो उन्हें संसार की चिंता सताने लगी।
भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से कई हिस्सों में बांट दिया था। यह हिस्से देश के कई स्थानों पर गिरे और पिंड बन गए। मगर शिव जी के हाथों में केवल माता के शव की भस्म रह गई। भगवान शिव को लगा कि कहीं वह सती का हमेशा के लिए न खो दें इसलिए उन्होंने उनकी शव की राख को अपने शरीर पर लगा दी थी।
महिलाएं नहीं देख सकती आरती
महाकाल की इस भस्म आरती का एक नियम है कि इसे महिलाएं नहीं देख सकती हैं। ऐसे में आरती के दौरान कुछ वक्त के लिए महिलाओं को घूंघट करना पड़ता है। वहीं, आरती के दौरान पुजारी केवल धोती में होता है।
भस्म आरती के दौरान मर्द धोती और औरतें साड़ी में होने चाहिए। मान्यताओं के अनुसार महाकाल श्मशान के साधक हैं और यही इनका श्रृंगार और आभूषण है। इसके अलावा शिवजी के ऊपर चढ़े हुए भस्म का प्रसाद ग्रहण करने मात्र से रोग दोष से मुक्ति मिलती है।
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