Varaha Jayanti Significance: वराह जयंती भगवान विष्णु के तीसरे अवतार का जन्म उत्सव है। उन्होंने दुनिया को बचाने के लिए खुद को एक वराह के रूप में अवतार लिया था और पृथ्वी को समुद्र के नीचे से बचाकर निकाला था। यह शुक्ल पक्ष में माघ महीने के दूसरे दिन (हिंदू कैलेंडर के अनुसार द्वादशी तिथि) को मनाया जाता है। भगवान विष्णु के सभी अलग-अलग अवतारों को हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भारत के विभिन्न हिस्सों में त्योहारों के रूप में मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान वराह की पूजा करने से भक्त को स्वास्थ्य और धन सहित सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। आधे वराह और आधे मानव रूप अवतार ने हिरण्याक्ष नाम के असुर को हरा दिया था और सभी बुराइयों को नष्ट कर दिया था। इस प्रकार, भक्त इस अवतार की पूजा करते हैं और अच्छाई के लिए प्रार्थना करते हैं।
वराह जयंती तिथि (Varah Jayanti Tithi): इस साल यानी 2020 में वराह जयंती 21 अगस्त, शुक्रवार को है।
1. यह त्योहार मुख्य रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है। भक्त सुबह जल्दी उठते हैं और भगवान की पूजा करते हैं।
2. भगवान वराह की मूर्ति को कलश (धातु के बर्तन) में रखा जाता है, जिसमें सिर पर नारियल के साथ पानी और आम के पत्ते होते हैं। बाद में यह किसी भी ज्ञात ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है।
3. पूजा पूरी होने के बाद, भगवान को प्रसन्न करने के लिए श्रीमद भगवद् गीता का पाठ करना चाहिए और मंत्रों का जाप करना चाहिए।
4. वराह जयंती पर उपवास करने वाले भक्तों को इस दिन जरूरतमंद लोगों को धन, कपड़े आदि दान करना चाहिए।
भगवान वराह के मंदिर (Varah Temples in India):
भगवान वराह का एक पुराना मंदिर मथुरा में मौजूद है जहां इस दिन का उत्सव हर्ष और खुशी के साथ भगवान की जयंती के रूप में मनाया जाता है। तिरुमाला में एक और मंदिर है; इसका नाम भू-वराह स्वामी मंदिर है जहां वराह स्वामी की मूर्ति को इस दिन पवित्र स्नान कराया जाता है। स्नान को घी, मक्खन, शहद, दूध और नारियल पानी के साथ कराया जाता है।
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