Saptashrungi Devi Temple: यहां देवी ने किया था महिषासुर का वध, आज भी होती है असुर के कटे सिर की पूजा

धार्मिक स्‍थल
Updated Oct 04, 2019 | 09:30 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Navratri Special : सप्तश्रृंगी देवी (Saptashrungi Devi Temple) का यह अनोखा मंदिर महाराष्ट्र राज्य के नासिक से 65 किमी दूर वणी गांव में स्थित है। यहां महिषासुर के कटे हुए सिर की पूजा होती है।

Saptashrungi Devi Temple
Saptashrungi Devi Temple  |  तस्वीर साभार: Instagram
मुख्य बातें
  • मां दुर्गा ने शेर पर सवार होकर महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था
  • इन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है
  • देश में एक ऐसा मंदिर है जो महिषासुर वध से संबंधित है

मां दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्रि शुरु हो चुका है। नवरात्रि में नौ दिनों तक आदि शक्ति दुर्गा के अलग अलग स्वरुपों की पूजा की जाती है। इस दौरान देश भर में सभी दुर्गा मंदिरों में मां के भक्तों की भारी भीड़ जुटती है और देवी के भक्त पूरी श्रद्धा से मां की आराधना कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा ने शेर पर सवार होकर महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए इन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि देश में एक ऐसा मंदिर है जो महिषासुर वध से संबंधित है और यहां महिषासुर के कटे हुए सिर की पूजा होती है।

यहां स्थित है यह अनोखा मंदिर 
सप्तश्रृंगी देवी का यह अनोखा मंदिर महाराष्ट्र राज्य के नासिक से 65 किमी दूर वणी गांव में स्थित है। यह मंदिर 4800 फुट ऊंचे सप्तश्रृंग पर्वत पर बना है। भागवत पुराण के अनुसार 108 शक्तिपीठों में से साढ़े तीन शक्तिपीठ महाराष्ट्र में स्थित हैं। आदि शक्ति स्वरुपा सप्तश्रृंगी देवी को अर्धशक्तिपीठ के रुप में पूजा जाता है।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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नवरात्रि में होता है विशेष उत्सव
सप्तश्रृंगी मंदिर में नवरात्रि में विशेष उत्सव आयोजित किया जाता है। इस दौरान देश के कोने कोने से देवी के भक्त इस मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। चैत्र और अश्विन नवरात्रि यहां बहुत धूमधाम से मनायी जाती है। माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि में सप्तश्रृंगी देवी प्रसन्न मुद्रा में जबकि अश्विन नवरात्रि में बहुत गंभीर दिखायी देती हैं।

यह है मंदिर की विशेषता
सप्तश्रृंग पर्वत पर इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 472 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मां का यह मंदिर सात पर्वतों से घिरा हुआ है इसलिए यहां की देवी को सप्तश्रृंगी अर्थात सात पर्वतों की देवी कहा जाता है। यहां पानी के 108 कुंड हैं। पर्वत पर स्थित गुफा में तीन द्वार हैं और प्रत्येक द्वार से देवी की प्रतिमा देखी जा सकती है।

महिषासुर का यहीं हुआ था वध
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सप्तश्रृंगी देवी की उत्पत्ति ब्रह्मा के कमंडल से हुई थी। इनकी पूजा महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती के रुप में की जाती है। कहा जाता है कि देवताओं के आह्वान पर मां सप्तश्रृंगी ने इसी पर्वत के ऊपर महिषासुर को युद्ध में परास्त करके उसका वध किया था।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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सभी देवताओं ने दिए थे अपने अस्त्र
भागवत पुराण के अनुसार महिषासुर राक्षस का वध करने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर अपने अस्त्र शस्त्र सप्तश्रृंगी देवी को दिए थे। अट्ठारह हाथों वाली सप्तश्रृंगी देवी ने हर हाथ में अलग अलग अस्त्र धारण किया है। भगवान शंकर ने उन्हें त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, वरुण ने शंख, अग्निदेव ने दाहकत्व, वायु ने धनुष-बाण, इंद्र ने वज्र और घंटा, यम ने दंड, दक्ष प्रजापति ने स्फटिक माला, ब्रह्मदेव ने कमंडल, सूर्य की किरणें, काल स्वरूपी देवी ने तलवार, क्षीरसागर का हार, कुंडल और कड़ा, विश्वकर्मा भगवान ने तीक्ष्ण परशु और कवच, समुद्र ने कमल हार, हिमालय ने सिंह वाहन आदि प्रदान किए थे।

यहां बना है महिषासुर का मंदिर
सप्तश्रृंगी मंदिर की सीढ़ियों के बायीं तरफ महिषासुर का एक छोटा सा मंदिर बना है। यहां महिषासुर के कटे सिर की पूजा होती है। माना जाता है कि इसी स्थान पर देवी ने महिषासुर का वध करने के लिए त्रिशूल से प्रहार किया था और त्रिशूल की दिव्य शक्ति के कारण पहाड़ पर एक छेद बन गया था। वह छेद आज भी मौजूद है।

प्राचीन मान्यताओं के चलते नवरात्रि के दिनों में इस पहाड़ी पर देवी के दर्शन के लिए देश के कोने कोने से श्रद्धालु आते हैं और मां की महिमा का वर्णन करते हैं।

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