उत्तराखण्ड के हरिद्वार स्थित देवी मनसा के मंदिर में सदियों से भक्त मन की आस पूर्ण करने के लिए धागा बांधते आते हैं। देवी मनसा को भगवान शंकर की पुत्री के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि देवी की शरण में आने वाले के मन की आस कभी अधूरी नहीं रहती। पुराणों में देवी का नागों के राजा नागराज वासुकी की बहन और जगत्कारू की धर्मपत्नी के रूप में उल्लेख मिलता है। देवी मनसा के पुत्र का नाम आस्तिक था। मान्यता है कि शिवालिक पहाड़ियों पर बिलवा पहाड़ की चोटी पर स्थित देवी मनसा देवी के मंदिर तक पहुंचने वाले भक्तों के संकट को देवी हर लेती हैं।
पेड़ पर बांधा जाता है मनोकामना का धागा
देवी के मंदिर में हमेशा ही भक्तों की भीड़ रहती है, क्योंकि माना जाता है कि यहां तक आने वाले भक्त को मां कभी निराश नहीं करतीं। यहां आने वाले भक्त मां के दर्शन करने के बाद वहां स्थित पेड़ में धागा बांध कर अपनी मनोकामना मां के समक्ष रखते हैं। मान्याता है कि मनोकामना पूर्ण होने के बाद मां को चढ़ावा चढ़ाया जाता है और पेड़ में बंधे धागे को खोल दिया जाता है।
51 सिद्ध पीठ में आता है मंदिर
मनसा देवी का यह मंदिर 51 सिद्ध पीठों तथा हरिद्वार मे पंचतीर्थ स्थलों से एक है। मनसा देवी की दो मूर्तियां मंदिर में हैं, एक मूर्ति की पांच भुजा और तीन मुंह है और दूसरी मूर्ति की आठ भुजाएं और आठ शस्त्र हैं। मनसा देवी मंदिर हरिद्वार के तीन शक्ति पीठ में से एक माना गया है। दो अन्य शक्ति पीठ चण्डी देवी और माया देवी है। ये तीनों मंदिर मिल कर त्रिभुज आकार की रचाना करते हैं।
ऐसे हुई थी देवी मनसा की उत्पत्ति
देवी मनसा शक्ति का ही एक रूप है और वह कश्यप ऋषि की पुत्री थी, जो उनके मन से अवतरित हुई थी और इसी कारण वह मनसा कहलाईं। देवी को कश्यप ऋषि की पुत्री के साथ ही नाग माता, शिव पुत्री और विष की देवी के रूप में जाना जाता है।
इन सात नामों के जाप से नहीं रहता सर्प का डर
देवी के सात नामों के जाप करने वालों को सर्प का भय नहीं रहता। ये नाम हैं- जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी।
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