नई दिल्ली. देवभूमि उत्तराखंड कई ईष्ट देवताओं की भूमि भी है। इन्हीं में से एक हैं गोलू देवता, जिन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। अल्मोड़ा के चितई और नैनीताल जिले के घोड़ाखाल में स्थित गोलू देवता के मंदिर में केवल चिट्ठी भेजने से ही मुराद पूरी हो जाती है।
गोलू देवता की उत्पत्ति को गौर भैरव ( भगवान शिव) के अवतार के रूप में माना जाता है। नैनीताल और अल्मोड़ा स्थित इनके मंदिर में चिट्ठियों की भरमार लगी रहती है।
गोलू देवता के मंदिर में खासकर युवा और युवतियां लव मैरिज के लिए आते हैं। मान्यताओं के अनुसार गोलू देवता के मंदिर में जिसका भी विवाह होता है उसका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहता है।
ये है गोलू देवता की कथा
गोलू देवता की कहानी कई रहस्यों से भरी हुई है। कुमाऊं क्षेत्र के चंपावत के कत्यूरी राजा झलराई की सात रानियां थी। किसी भी रानी से कोई संतान नहीं थी तब राजा ने संतान पाने के लिए अनेक देवताओं की पूजा दान किए।
राजा ने कई सारे उपाय किए लेकिन, कोई भी फल नहीं मिला। इसके बाद वे पंडित और ज्योतिषियों के शरण में गए। उन्होंने राजा की जन्म कुंडली देखकर बताया की वे आठवा विग्रह करे तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी।
राजा झलराई ने आधी रात को सपना में नीलकंठ पर्वत पर बैठे कलिंका नामक सुन्दर कन्या को देखा और दूसरे दिन यह बात सभी दरबारियों को बताते अपनी सेना के साथ नीलकंठ पर्वत की ओर चल दिए। काफी वर्षों बाद उन्हें तपस्या में लीन कलिंका मिली।
राजा झलराई ने अपना परिचय कलिंका को बताया और कहा सात रानियां होने के बावजूद मेरी कोई संतान नहीं है और कलिंका से अपनी आठवी रानी बनने का निवेदन किया।
कलिंका ने राजा को सलाह दी की वे साधु के पास जाकर शादी की अनुमति मांगे। राजा साधु के पास जाकर पीड़ा सुनाते है और साधु ने राजा की पीड़ा सुनकर विवाह की अनुमति दे दी।
रानी कलिंका से राजा को संतान हुई तो दूसरी रानियों ने जलन के कारण बच्चे की जगह पर खून से सना सिल बट्टा(एक प्रकार का बड़ा पत्थर) रख दिया और बच्चे को खतरनाक गायों के गोशाला में फेंक दिया।
बालक गोलू गायों का दूध पीकर बड़ने लगा और रानी से कहा की तेरे गर्भ से यह सिल बट्टे पैदा हुए है जिस कारण रानी काफी दुखी हुई। रानियों ने गोशाला जाकर देखा की नवजात बालक सुरक्षित है। उन्होंने उसे बिच्छु घास की झाड़ियो में फेंक दिया।
जब सारी चाल नाकामयाब रही अंत में उन्होंने बच्चे को एक टोकरी में रखा और दूर जंगल में छोड़ दिया। रानियों ने एक काठ के संदूक में बच्चे को रखा और काली नदी में फेंक दिया पर वह डूबा नहीं। संदूक सात दिन तक बहते -बहते आठवें दिन गोरीघाट में भाना मछुवारे के जाल में फंस गया।
मछुआरे ने संदूक खोलकर देखा उसमे हंसता खेलता बच्चा निकला। मछुआरे की कोई संतान नहीं थी, ऐसे में वह बच्चे को घर ले गया उसे पालने लगा। बच्चे का नाम गोलू रखा गया।
गोलू ने सपने में एक बार अपनी मां कलिंका और पिता झलराई को देखा और भाना को सारी बात बता दी। यह भी कहा की वे ही उसके असली मां -बाप हैं। उसने अपने मां-बाप से घोड़ा मांगा।
भाना ने एक लकड़ी(काठ) का घोड़ा बनाकर दे दिया। वह काठ के घोड़े पर घुमने लगा। एक बार वह अपने घोड़े को पानी पिलाने उस जगह ले गया जहां वे सातों रानियां नहाने के लिए आती थीं। रानियों ने उसके घोड़े को पानी न पिने दिया बालक गोलू ने रानियों के घड़े फोड़ दिए।
रानियों ने कहा 'काठ का घोड़ा पानी कैसे पी सकता है। ' गोलू ने उत्तर दिया, 'जब एक औरत सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो काठ का घोड़ा कैसे पानी नहीं पी सकता है।'
रानियां यह बात सुनकर भयभीत हो गई। ये बात राजा के कानों तक पहुंची उसने गोलू को बुलाया और अपनी बात सिद्ध करने को कहा। गोलू ने अपनी माता कलिंका के साथ हुए अत्याचारों की सारी गाथा सुनाई।
राजा ने उसी समय गोलू को अपना पुत्र स्वीकार किया और सातों विमाताओ को प्राण दंड दे दिया। हालांकि, न्याय के देवता गोलू ने उन्हें क्षमादान देनी की अपील की। इसी कारण उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है और उनका वाहन घोड़ा है।
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