हिंदू धर्म में आषाढ़ अमावस्या का बहुत महत्व माना गया है। इस दिन पितृ देवता की पूजा करने के साथ ही स्नान, दान, श्राद्ध व व्रत का भी विशेष महत्व होता है। अमावस्या को पितरों के देवता की पूजा होती है और इसलिए इस दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए गाय के गोबर से बन उपले में घी और गुड़ मिला कर जलाने की विधान होता है। यदि उपले न हो तो ताजे बने खाने से धूप दिखाना होता है। साथ ही हथेली पर पानी लेकर अंगूठे से उसे धरती पर छोड़ना होता है। इससे पितरों का तर्पण होता है और वह प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
आषाढ़ मास की अमावस्या को भी खास इसलिए भी माना गया है कि इसके बाद वर्षा ऋतु का आगमन होता है। अमवास्या के दिन दान-पुण्य और स्नान-ध्यान का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन इच्छा अनुसार जो भी संभव हो दान जरूर करना चाहिए। अमावस्या पर पितरों की पूजा करने से घर-परिवार में सुख-शांति आती है और वंश वृदिध् होती है। इसलिए इस दिन गंगा जल को अपने स्नान के पानी में मिलकार स्नान करें और खुद पितरों की पूजा कर उनका तपर्ण करें।
आषाढ़ अमावस्या काल / Ashadha Amavasya Date and Shubh Muhurat 2020
आषाढ़ अमावस्या 21 जून यानी रविवार को है। इस दिन ही पितृकर्म संपन्न करना होगा। अमावस्या तिथि 20 जून को सुबह 11 बजकर 52 मिनट से आरंभ होगी, जो अगले दिन यानी 21 जून को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। 21 जून को ही सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। ऐसे में अमावस्या की पूजा ग्रहण पूरा होने के बाद ही करें।
चंद्रमा की कलाएं एक समान नहीं रहती हैं। वह घटती और बढ़ती हैं। चंद्रमा जिस पक्ष में घटता है उसे कृष्ण पक्ष और जिस पक्ष में बढ़ता है उसे शुक्ल पक्ष कहा जाता है। हर 15 दिन पर पक्ष बदल जाता है। कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या और शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णमा होती है। पूर्णमा पर देवताओं की और अमावस्या पर पितरों के देवता की पूजा की जाती है।
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