भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष चतुर्थी यानी शुक्रवार 7 अगस्त को बहुला चातुर्थी का व्रत रखा जाना है। बहुला चौथ की पूजा शाम के समय चांद को देखने के साथ की जाती है। इस दिन महिलाएं सुबह से व्रत प्रारंभ कर देती हैं और शाम के समय चन्द्रोदय के बाद शिव-पार्वती व गणेशजी की पूजा कर चंद्रमा को उजले फूल व दूध से अर्घ्य देकर पुत्र की दीर्घायु की कामना करती हैं। यह व्रत उन लोगों के लिए भी खास माना गया है जिनकी संतान नहीं होती। इस व्रत को करने से सूनी गोद भी भर जाती है। इस व्रत में गाय की पूजा का भी विशेष महत्व है।
बहुला चतुर्थी तिथि और समय
बहुला चतुर्थी 7 अगस्त 2020 को सुबह 6: 33 बजे से रात 8:48 बजे तक रहेगी।
जानें, बहुला चतुर्थी व्रत पूजा के बारे में
बहुला चतुर्थी या बोल चौथ देश के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस व्रत और पूजा का संबंध किसानों से भी है। इस व्रत में गायों की पूजा किसान और उनके परिवार की महिलाएं करती हैं। बाहुला चतुर्थी का लगभग देश के हर राज्य में मनाया जाता है, लेकिन इसे गुजारात का मुख्य त्यौहार माना जाता है। हिंदू धर्म में गाय और बछड़ों की पूजा का विधान है। बाहुला चतुर्थी पर गायों की पूजा करने से भक्तों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भक्त भगवान कृष्ण की पूजा भी इस दिन करते हैं, क्योंकि भगवान कृष्ण गोपालक थे और उनका इससे जुड़ा रहा है। इस दिन किसान समुदाय सुबह उठने के साथ ही गायों के रहने वाले स्थान को साफ कर गायों और बछड़ों को नहलाते हैं। फिर पूजा की तैयारी कर कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं।
वहीं, ज्योतिष शास्त्र में भगवान गणेश को चतुर्थी का स्वामी माना गया है। इसलिए इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान गणपति और भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा भी की जाती है। इस पूजा को करने से संतान सुख मिलता है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। रोग आदि दूर होते हैं।
बहुला चतुर्थी व्रत कथा
बहुला नाम की एक गाय थी जो बछड़े को दूध पीलाने के लिए जा रही थी। तभी रास्ते में बहुला का सामना एक शेर से हुआ। बहुला बेहद घबराई गई लेकिन हिम्मत कर बहुला ने शेर को तब तक अपनी जान बक्शने के लिए बोला कि जब तक कि वह अपने बछ़ड़े को दूध न पिला दे। बहुला ने शेर से कहा कि दूध पिलाने के बाद वह शेर के पास वापस लौट आएगी। शेर ने बहुला की बात मान ली और उसे जाने दिया और वहीं उसकी प्रतिक्षा करने लगा, हालांकि शेर को उम्मीद कम है थी कि बहुला लौट कर आएगी, लेकिन बहुला वापस आ गई। शेर बहुला की अपने बच्चे के प्रति प्रतिबद्धता और वचन को देख कर इतना प्रभावित हो गया कि उसने उसे खाने का विचार त्याग दिया।
शेर के इस त्याग और गाय बहुला का बछड़े के प्रति ये प्यार और कर्तव्य को देखते हुए ही ये त्योहार मनाया गया। इस दिन गाय के दूध का प्रयोग नहीं किया जाता है और इसे केवल बछड़े के लिए छोड़ दिया जाता है। यह पूजा का प्रतीक है जो देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
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