प्रदोष व्रत हर महीने शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है और विधि अनुसार उनकी पूजा की जाती है। अगर प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन पड़ रहा है तो उसे भौम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि भौम प्रदोष व्रत बहुत अनुकूल होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन भगवान शिव के साथ हनुमान जी का आशीर्वाद भी मिलता है। लोग इस दिन अपने घरों में नई शुरुआत करते हैं। धार्मिक कार्यों के लिए भी प्रदोष व्रत का दिन बहुत लाभदायक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और घर में खुशहाली आती है।
भौम प्रदोष व्रत तिथि आरंभ : 9 फरवरी सुबह 3:19 बजे से
भौम प्रदोष व्रत तिथि समाप्त : 10 फरवरी सुबह 2:05 बजे
यहां जानिए प्रदोष व्रत की पूजा विधि और व्रत कथा
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
प्रदोष व्रत के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त हो जाना चाहिए। स्नान आदि करके साफ-सुथरे कपड़े ग्रहण करना चाहिए। फिर अपने पूजा घर को साफ करके गंगाजल छिड़क लेना चाहिए। पूजा घर समेत बाकी कमरों में भी गंगाजल छिड़कना चाहिए। पूजा घर में पूजा करने से पहले सफेद कपड़े को बिछा दीजिए फिर चौकी के चारों तरफ कलेवा बांधिए।
कलेवा बांधने के बाद भगवान शिव की मूर्ति को स्थापित कीजिए। मूर्ति स्थापना के बाद शिव जी को गंगाजल से स्नान करवाइए फिर फूल और माला अर्पित कीजिए। अब शिव जी को चंदन लगाइए और शिवलिंग का अभिषेक कीजिए। धतूरा, भांग और मौसमी फल को शिवलिंग पर चढ़ाइए। अब विधि अनुसार भगवान शिव जी की पूजा कीजिए और आरती करके भोग लगाइए।
प्रदोष व्रत कथा
बहुत समय पहले एक बूढ़ा ब्राह्मण रहता था जिसकी एक पत्नी और एक संतान थी। ब्राह्मण की मृत्यु हो जाने के बाद ब्राह्मण की पत्नी अपने पुत्र के साथ शाम तक खाने की तलाश में भटकती रहती थी और भीख मांगती थी। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी को विदर्भ देश का राजकुमार मिला जो अपने पिता की मृत्यु के बाद बेहाल हो गया था। राजकुमार को देखकर ब्राह्मण की पत्नी से रहा नहीं गया और वह उसे अपने बेटे की तरह मान कर अपने घर ले आई। एक दिन अपने दोनों बेटों को साथ लेकर ब्राह्मण की पत्नी शांडिल्य ऋषि से मिलने चली गई। आश्रम जाकर उसे प्रदोष व्रत का पता लगा और घर आकर वह भी प्रदोष व्रत करने लगी। एक दिन दोनों बच्चे वन में गए थे। घूमने के बाद ब्राह्मण का बेटा घर वापस आ गया था लेकिन राजकुमार वन में ही रह गया था। राजकुमार को वन में गंधर्व की बेटी देखी थी जिसका नाम अंशुमति था। राजकुमार अंशुमति से बात करने चला गया था जिसके वजह से उसे घर आने में देरी हो गई थी।
अगले दिन राजकुमार वापस उसी जगह पर गया, वहां उसे अंशुमति के मां-बाप दिखे जो राजकुमार को देखते ही पहचान गए। उन्होंने राजकुमार से पूछा कि तुम तो विदर्भ देश के राजकुमार धर्मगुप्त हो ना। राजकुमार ने कहा की आप लोगों ने सही पहचाना। इसके बाद अंशुमती के माता-पिता राजकुमार को अंशुमती का हाथ थामने के लिए मनाने लगे। राजकुमार ने शादी के लिए हां कर दिया जिसके बाद उनकी शादी बहुत धूमधाम से हुई। गंधर्व की सेना की मदद से राजकुमार ने विदर्भ देश पर हमला किया और वहां राज्य करने लगा।
राजकुमार के महल में ब्राह्मण की पत्नी और उसके बेटे को भी लाया गया और सभी खुशी-खुशी रहने लगे। एक दिन ऐसा आया जब अंशुमती ने राजकुमार से विदर्भ पर हमला करने का कारण पूछा तब राजकुमार ने उसे सब कुछ बता दिया और कहा की प्रदोष व्रत करने का यह फल हम सबको मिला है।
कहा जाता है कि इस घटना के बाद से सभी लोग विधि अनुसार प्रदोष व्रत करने लगे।
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