रमा एकादशी को माता लक्ष्मी की प्रिय माना गया है। मान्यता है कि इस व्रत में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा एक साथ करने पर मनवांछित फल मिलता है। इस दिन माता लक्ष्मी को तुलसी के पत्ते जरूर चढ़ाने चाहिए, यह शुभ माना जाता है। उसके बाद व्रत की पूरी कथा पढ़ें।
एक बार की बात है जब धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से रमा एकादशी व्रत की महत्वता और उससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में पूछने लगे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया की कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी का व्रत किया जाता है। यह व्रत हमारे सभी पापों का नाश करता है। धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से इस कथा को सुनने की प्रार्थना की, तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ठीक है, मैं आपको यह कथा सुनाता हूं आप इसे ध्यान पूर्वक सुनें।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, हे धर्मराज! प्राचीन समय में मुचुकुंद नाम का एक राजा राज करता था। उस राजा की मित्रता देवराज इंद्र, मृत्यु के देवता यम, धन के देवता कुबेर, एवं वरुण देव और विभीषण थी।
उस राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम चंद्रभागा था। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ किया था। एक समय जब शोभन ससुराल आया था तब उन्हीं दिनों जल्द ही रमा एकादशी का व्रत भी आने वाला था।
शोभन शरीर से दुबला पतला था और उसे भूख बर्दाश्त नहीं होती थी। लेकिन राजा ने पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी थी कि एकादशी के दिन किसी के भी घर भोजन नहीं बनेगा और ना ही कोई भोजन करेगा।
राजा की यह घोषणा सुनकर शोभन चिंता में पड़ गया और अपनी पत्नी से जाकर बोला, चंद्रभागा मैं तो भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता तुम कुछ ऐसा उपाय करो जिससे मेरे भोजन का प्रबंध हो सके, अन्यथा मैं बिना भोजन के मर जाऊंगा।
चंद्रभागा ने कहा, स्वामी मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करता इंसान तो छोड़िए इस राज्य में एकादशी के दिन किसी जानवर को भी भोजन नहीं दिया जाता है। चंद्रभागा ने कहा अगर आप भोजन करना चाहते हैं तो राज्य से बाहर किसी दूसरे स्थान चले जाइए क्योंकि इस राज्य में रहकर तो आपका भोजन करना असंभव है।
चंद्रभागा की बात सुनकर शोभन ने कहा अगर इस व्रत में तुम्हारे पिता कि इतनी आस्था है तो मैं भी यह व्रत जरूर करूंगा चाहे जो हो जाए।
शोभन ने भी रमा एकादशी का व्रत रख लिया लेकिन कुछ समय बीतने के बाद ही वह भूख और प्यास से तड़पने लगा। सूर्यास्त के बाद जहां पूरा राज्य जागरण में मस्त था वही शोभन भूख और प्यास से पीड़ित था। सुबह होते-होते शोभन के प्राण पखेरू हो लिए और उसकी मृत्यु हो गई।
राजा ने पूरे विधि विधान से शोभन का अंतिम संस्कार किया और चंद्रभागा को राज महल में ही रहने का निवेदन किया। पति की मृत्यु के बाद चंद्रभागा पिता के राज महल में ही रहने लगी।
लेकिन रमा एकादशी व्रत रखने की वजह से शोभन को मंदराचल पर्वत पर एक सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ जहां वह अप्सराओं के साथ और हीरे जवाहरात मोतियों के साथ रहने लगा। शोभन की जीवन शैली देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे वहां दूसरा इंद्र विराजमान हो।
कुछ समय बाद मुचुकुंद नगर में रहने वाला एक ब्राम्हण तीर्थ यात्रा करते हुए घूमता घूमता उस पर्वत की ओर जा पहुंचा। वहां जाकर जब उसने शोभन को देखा तो देखते ही पहचान गया कि वह राजा का जमाई शोभन है। शोभन भी उसे पहचान गया और उसे अपने पास बिठाकर राज्य के बारे में कुशल मंगल पूछा। ब्राह्मण ने कहा राज्य में राजा और सभी लोग कुशल मंगल है। लेकिन हे राजन, मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि मृत्यु के पश्चात भी आपको यह सब कुछ इतना आलीशान महल इतना सुंदर राज्य कैसे प्राप्त हुआ।
तब शोभन बोला की कार्तिक कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी व्रत करने से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ है। शुभम ने कहा लेकिन ब्राह्मण देव यह सब अस्थिर है, कुछ ऐसा उपाय बताइए जिससे यह हमेशा के लिए स्थिर हो जाए।
ब्राह्मण ने कहा, राजन स्थिर क्यों नहीं है? और स्थिर कैसे हो सकता है? आप बताइए जरूरत पड़ी तो मैं अश्वमेध यज्ञ भी करने को तैयार हूं। शोभन ने कहा मैंने पूरी श्रद्धा से रमा एकादशी का व्रत किया था इस वजह से मुझे यह सब प्राप्त हुआ लेकिन अभी तक मेरी पत्नी चंद्रभागा को इसके बारे में कुछ नहीं पता है इसलिए यह सब अस्थिर है। अगर आप जाकर यह सारी कहानी चंद्रभागा को बता दें तो यह सब स्थिर हो जाएगा।
ब्राह्मण अपने राज्य वापस लौटा और राजा की पुत्री चंद्रभागा को सारी कहानी सुनाई। चंद्रभागा उसकी बात सुनकर बेहद प्रसन्न हुई है और ब्राह्मण से कहा कि आप सच कह रहे हैं या किसी सपने की बात कर रहे हैं। ब्राह्मण ने कहा पुत्री मैंने तुम्हारे पति को साक्षात देखा है यह कोई स्वप्न नहीं था।
चंद्रभागा ने ब्राह्मण देव से निवेदन किया कि वह उसे लेकर उसके पति के पास जाएं और उन दोनों का मेल पुनः करवा दें। ब्राह्मण ने चंद्रभागा की बात सुनकर उसे मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर ले गया जहां वामदेव ने सारी बातें सुनी और वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का शरीर दिव्य कर दिया। एकादशी व्रत के कारण चंद्रभागा दिव्य गति से अपने पति के निकट पहुंच गई।
अपनी प्रिय पत्नी को देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ और उसे अपने पास बिठा लिया। चंद्रभागा कहने लगी हे स्वामी आप मेरे सभी पुण्यों को ग्रहण कीजिए। चंद्रभागा ने कहा पिछले 8 वर्षों से मैं अपने पिता के घर रमा एकादशी व्रत को विधिपूर्वक संपन्न करती आई हूं, इसलिए अब मैं आपके इस अस्थिर जीवन को स्थिर कर सकती हूं। चंद्रभागा ने अपने पुण्यो से वहां सब कुछ स्थिर कर दिया और अपने पति के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगी।
भगवान श्री कृष्ण ने आखरी में कहा, हे धर्मराज भविष्य में जो भी मनुष्य इस व्रत को विधि पूर्वक संपन्न करेगा उसके समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी एक समान है इन दोनों में कोई भी भेद नहीं है। इसलिए इन दोनों एकादशी का व्रत जो भी मनुष्य विधि पूर्वक संपन्न करेगा वह हमेशा सुखी जीवन व्यतीत करेगा।
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