रोहिणी नक्षत्र का धार्मिक लिहाज से बहुत महत्व है। 3 नंबवर दिन मंगलवार को यह व्रत रखा जाना है। 27 प्रकार के नक्षत्र होते हैं और इसमें रोहिणी नक्षत्र को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। बहुत महत्व बताया गया है। कुल 27 नक्षत्रों में इसका स्थान विशेष है। जैन धर्म में इस नक्षत्र को सर्वाधिक महत्व इसलिए भी दिया गया है, क्योंकि इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए इस दिन व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं भगवान वासुपूज्य की आराधना करती हैं। इस व्रत की पूजा विधि, महत्व और कथा के बारे में आइए आपको बताएं। एक बात इस व्रत में बहुत खास होती है कि यदि इस व्रत में कथा का श्रवण न किया जाए तो व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है।
रोहिणी व्रत का संबध माता रोहिणी से माना गया है। इस व्रत में देवी की पूजा के साथ उनसे अपने पति के लिए महिलाएं आशीर्वाद मांगती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। हालांकि, कई बार ये पुरुष भी अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए करते हैं। इस व्रत को रखने से धन और धान्य में वृद्धि होती है। तो आइए आपको इस व्रत की पूजा विधि के बारे में बताएं।
रोहिणी व्रत पूजा विधि (Rohini Vrat Pooja Vidhi)
रोहिणी व्रत के दिन सूर्यादय से पूर्व स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प ले कर व्रत प्रारंभ करना चाहिए। इसके बाद रोहिणी माता का ध्यान करें और एक चौकी पर आसन दे कर भगवान वासुपूज्य की पंचरत्न से निर्मित प्रतिमा की स्थापना करें। इसके बाद देवी को ध्यान कर सुहाग और श्रृंगार का सामान उन्हें अर्पित करें और भगवान को वस्त्र, फल और फूल के साथ नैवेध्य अर्पित कर भोग लगाएं। पूजा समाप्त होने पर वहीं बैठकर व्रत कथा का वाचन करें औश्र इसके बाद गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं। रोहिणी व्रत उदया तिथि में रोहिणी नक्षत्र के दिन से आरंभ होकर बाद के नक्षत्र मार्गशीर्ष तक चलता है। रोहिणी व्रत का नियमानुसार 3, 5 या 7 सालों तक करने के बाद उद्यापन किया जाता है।
रोहिणी व्रत का महत्व (Rohini Vrat Mahatva)
इस व्रत को करने से घर में धन—संपत्ति और सुखों में वृद्धि होती है। महिलाएं इस दिन देवी रोहिणी की भी पूजा करती हैं। पति की लम्बी आयु और उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिए यह व्रत किया जाता है। भगवान से अपने ज्ञात-अज्ञात गलतियों के लिए क्षमा मांग कर नेक राह पर चलने की प्रार्थना की जाती है।
रोहिणी व्रत कथा (Rohini Vrat Katha)
चंपापुरी नामक नगर के राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्मीपति, 7 पुत्रों और एक पुत्री रोहिणी के साथ रहते थे। एक बार राजा ने निमित्तज्ञानी से पूछा कि उनकी पुत्री का विवाह किसके साथ होगा? इस पर ज्ञानी ने कहा कि आपकी पुत्री का विवाह हस्तिानपुर के राजकुमार अशोक के साथ होगा। ज्ञानी की बात सुनकर राजा ने रोहिणी के स्वयंवर का आयोजन किया और जिसमें रोहिणी ने राजकुमार अशोक को अपना पति चुना और उसके साथ विवाह संपन्न हुआ। कुछ समय पश्चात हस्तिनापुर के वन में श्रीचारण नामक मुनिराज से मिलने अशोक अपने परिवार के साथ गए। वहां उन्होंने देखा कि मुनिराज की पत्नी काफी शांत हैं। उन्होंने इसका कारण पूछा, इस पर मुनिराज ने बताया कि पौराणिक काल में हस्तिनापुर नगर में वस्तुपाल नाम के राजा और उसका मित्र धनमित्र रहते थे। धनमित्र के घर एक कन्या का जन्म हुआ, जिसके शरीर से हमेशा दुर्गंध आती थी, इसलिए उसका नाम दुर्गंधा रख दिया गया। धनमित्र अपनी पुत्री को लेकर हमेशा चिंतित रहता था।
एक दिन उसके नगर में अमृतसेन मुनिराज आए। धनमित्र अपनी पुत्री को लेकर मुनिराज के पास गया और पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा। मुनिराज ने बताया कि राजा भूपाल गिरनार पर्वत के निकट एक नगर में राज्य करते थे। उनकी पत्नी सिंधुमती थी, जिसको अपनी सुंदरता पर काफी घंमड था। एक बार राजा-रानी वन भ्रमण करने के लिए निकले, तभी वहां राजा ने मुनिराज को देखा और पत्नी के पास जाकर मुनिराज के भोजन की व्यवस्था करने को कहा। इस पर सिंधुमती ने पति की आज्ञा को मानते हुए हामीभर दी, लेकिन मन में काफी क्रोधित हुई और गुस्से में उसने मुनिराज को कड़वी तुम्बिका भोजन में परोस दी। इसे खाकर मुनिराज की मृत्यु हो गई। जब राजा को यह पूरी बात पता चली तो उन्होंने रानी को महल से निकाल दिया और इस पाप की वजह से रानी के कोढ़ हो गया और रानी काफी वेदना का सामना करते हुए मृत्युलोक को प्राप्त हो गई। रानी सिंधुमती मरणोपरान्त नर्क में पहुंची और उसने अत्यंत दुख भोगा और पशु योनि में जन्मी और फिर तेरे घर में दुर्गंधा कन्या बनकर पैदा हुई।
मुनिराज की पूरी बात सुनकर धनमित्र ने पूछा कि इस कष्ट को दूर करने का उपाय बताएं। तब मुनिराज ने बताया कि यदि रोहिणी व्रत 5 वर्ष और 5 मास तक करना होगा। धनमित्र और उसकी कन्या दुर्गंधा ने विधिपूर्वक इस व्रत किया और मृत्यु के पश्चात वह स्वर्ग पहुंची और तत्पश्चात देवी हुई और राजकुमार अशोक की रानी रोहिणी बनी।
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