शनि जयंती हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है। शनि जयंती पर वैसे तो हर किसी को पूजा-पाठ शनिदेव की मंदिर में जा कर करना चाहिए, लेकिन जिन पर शनि की ढैय्या या साढ़े साती चल रही हो उन्हें इस दिन जरूर विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए। हिंदू धर्म में शनि देव को बहुत जल्दी क्रोधित होने वाला बताया गया है। माना जाता है कि शनि यदि कुपित हो जाएं तो इंसान का जीवन मृत्यु से भी बदतर हो जाता है। इसलिए शनिदेव की कुदृष्टी से हमेशा बच कर रहना चाहिए। शनि देव सूर्य और माता छाया के पुत्र है। माना जाता है कि शनि ही सबसे धीमी गति से एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करते हैं। एक राशि से दूसरी राशि में पहुंचने में ढाई वर्ष का समय लग जाता है। शनि की धीमी चाल के पीछे एक पौराणिक कथा है।
शनि की धीमी चाल का राज रावण से जुड़ा हुआ है। रावण को ज्योतिष प्रकाण्ड विद्वान माना जाता था और एक बार रावण ने अपने इसी ज्ञान के बल पर सभी ग्रहों का अपने वश में कर लिया और सभी ग्रहों को एक स्थिति में रहने के लिए बाध्य कर दिया, लेकिन शनि ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। रावण का सभी ग्रहों को एक स्थित में रखने के पीछे एक मकसद था।
रावण की पत्नी मंदोदरी गर्भवती थी और रावण चाहता था कि उसका पुत्र जब हो तो सारे ग्रह एक स्थिति में। इससे उसका होने वाला तेजस्वी, शौर्य, पराक्रमी होगा। रावण क्योंकि प्रकांड विद्वान था इसलिए वह जानता था कि किस समय उसका पुत्र हो ताकि वह अजेय एवं दीर्घायु भी हो।
रावण के ग्रहों को वश में करने से बाकी ग्रह तो उसके अनुसार ही एक स्थित में रहे लेकिन शनिदेव को ये बात बर्दाश्त नहीं हुई और वह इसका विरोध करने लगे और वह अपनी स्थित से परिवर्तित हो गए। शनि ने जैसी ही स्थिति बदली मंदोदरी ने पुत्र को जन्म दे दिया। शनि ऐसी स्थिति में आ गए जिससे रावण का पुत्र यानी मेघनाथ अल्पायु हो गया। रावण को जब ये ज्ञात हुआ तो वह क्रोध से पागल होने लगा।
क्रोध में आकर रावण ने शनि पर गदा का प्रहार कर दिया, जिससे शनिदेव का एक पैर टूट गया और वह लंगड़े हो गए और यही कारण था कि शनि की चाल अत्यंत धीमी हो गई और उसके बाद से शनि को ग्रह गोचर में अन्य ग्रहों की अपेक्षा ज्यादा समय लगता है। शनि के अलावा सभी ग्रह एक स्थिति में थे इसलिए मेघनाथ पराक्रमी, तेजस्वी और शौर्यवान तो था, लेकिन उसकी आयु कम थी और वह लक्ष्मण के हाथों जल्दी ही मारा गया था।
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