सनातन धर्म में वसंत ऋतु बहुत महत्वपूर्ण मानी जाता है क्योंकि इस ऋतु में कई प्रमुख त्यौहार और पर्व मनाए जाते हैं। इन्हें प्रमुख त्योहारों में से एक रंगों का त्योहार होली है। हिंदू पंचांग के अनुसार, होली के 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है जो होली के पर्व के आने का संकेत देता है। होलाष्टक की शुरुआत में लोग होलिका दहन करने वाली जगह पर दो डंडे गाड़ते हैं। इनमें से एक डंडा होलिका को दर्शाता है वहीं दूसरा डंडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है।
यह प्रथा हिंदू सभ्यता में बहुत प्राचीन है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि ब्रज में भगवान श्री कृष्ण ने पहली बार होली का पर्व मनाया था। अगर आप भारत के इस प्राचीन प्रथा के बारे में नहीं जानते हैं तो यह लेख अवश्य पढ़िए।
कब गाड़ा जाता है?
भारत के कई प्रांतों में फाल्गुन मास के शुरुआत में होली के डंडे को गाड़ा जाता है वहीं कई प्रांतों में यह होलाष्टक के शुरुआत में गाड़े जाते हैं। कुछ लोग माघ पूर्णिमा पर ही इन डंडों को गाड़ देते हैं। नए दौर में इन डंडो को होलिका दहन से 1 दिन पहले गाड़ दिया जाता है।
होली से 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है जिसमें इन डंडों को गाड़ा जाता है। इन डंडो को अक्सर चौराहे पर गाड़ा जाता है। होली का डंडा अधिकतर सेम का पौधा होता है। भारत के कई प्रांतों में एक डंडा गाड़ा जाता है वहीं कुछ प्रांतों में दो डंडे गाड़े जाते हैं। एक डंडा होलिका का प्रतीक माना जाता है वही दूसरा डंडा प्रहलाद को दर्शाता है। इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है फिर इनके आसपास घांस, लकड़ियां और उपले रखे जाते हैं। होलिका दहन पर इन डंडो को जलाया जाता है और अगले दिन रंगों का त्योहार यानी होली मनाई जाती है।
जब यह डंडे जलने के लिए तैयार हो जाते हैं तब इनके आसपास ज्यादातर महिलाएं सुंदर और आकर्षक रंगोली बनाती हैं। रंगोली बनाने के बाद इन डंडों के पास होली की पूजा होती है। इन डंडों को जलाने के लिए गाय के गोबर से बने जिन उपलों का प्रयोग होता है वह बहुत विशेष माने जाते हैं। इन उपलों को भरभोलिए कहा जाता है और इन डंडों के बीच में एक छेद होता है। इन उपलों से माला बनाई जाती है जिसमें सात उपले होते हैं।
इन डंडों में आग लगाने से पहले उपलों से बनी माला को बहनें अपने भाइयों के सिर से सात बार वारती हैं और फेंक देती हैं जिन्हें होलिका दहन पर जलाया जाता है। इससे भाइयों पर लगीं सभी बुरी नजरें जल जाती हैं। होलिका दहन पर होली के डंडों को निकाल लिया जाता है और इनकी जगह अन्य डंडों का उपयोग किया जाता है।
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