नई दिल्ली: भारत के महान फुटबॉलरों में से एक सुनील छेत्री ने खुलासा किया कि वह कोलकाता में खेलते हुए अपने करियर के शुरूआती दिनों में इतने दबाव में रहते थे कि कई बार रोया करते थे और यहां तक कि उन्होंने इस खेल को छोड़ने का भी मन बना लिया था। इसलिये उन्हें मदद के लिए अपने पिता को फोन करना पड़ता था, जो सेना में थे। छेत्री का पहला पेशेवर अनुबंध कोलकाता के मोहन बागान क्लब के लिए था और तब वह 17 साल के थे।
उन्होंने 'इंडियनसुपरलीग डॉट कॉम' से कहा, 'पहला साल अच्छा था। मुझे मैचों में 20 या 30 मिनट का 'गेम टाइम' मिलता था और लोग मुझे अगला 'बाईचुंग भूटिया' कहने लगे थे। लेकिन कोलकाता में फुटबॉल आपको बहुत तेजी से सीख देती है। जब आप हारना शुरू कर देते हो तो भीड़ काफी उग्र हो जाती है और ऐसे ही समय में मैं रोया करता था।'
छेत्री ने आगे बताया, 'कोलकाता में हारना कोई विकल्प नहीं है। यह आसान नहीं है, काफी खिलाड़ी खेल छोड़ चुके हैं। ऐसी भी घटनायें होती थीं, जिससे मैं हिल गया था और एक बार मैंने अपने पापा को भी फोन किया था और कहा था कि मुझे नहीं लगता कि मुझे यह करना चाहिए।' लेकिन अब 35 साल के हो चुके छेत्री ने खेल नहीं छोड़ा क्योंकि उनके परिवार ने हमेशा उतार चढ़ाव में उनका साथ निभाया।