अब गोबर का इस्तेमाल पानी से हानिकारक तत्वों और रसायनों को अलग करने के लिए भी हो सकेगा। धनबाद स्थित आईआईटी-आईएसएम के रिसचर्स की एक टीम ने शोध के बाद इसकी तकनीक विकसित कर ली है।
दावा किया गया है कि इसके जरिए फैक्ट्रियों और खदानों से निकलने वाले खतरनाक रसायन वाले अनुपयोगी पानी को शुद्ध कर उपयोग लायक बनाया जा सकेगा। यह रिसर्च आईआईटी-आईएसएम के डिपार्टमेंट ऑफ एनवायरमेंट इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर बृजेश कुमार मिश्र की अगुवाई वाली टीम ने किया है।
टीम में डिपार्टमेंट ऑफ केमिस्ट्री के गणेश चंद्र नायक, डॉ. सोनालिका और कई रिसर्च एसोसिएट शामिल हैं। प्रो. मिश्र ने बताया कि टीम ने लगातार तीन वर्षों के रिसर्च के बाद गोबर के जरिए एक ऐसा ऑब्जर्वेंट विकसित किया है, जिसकी मदद से पानी में घुले भारी तत्वों को अवशोषित किया जा सकता है।
इतना ही नहीं, इस ऑब्जर्वेंट का इस्तेमाल एनर्जी रेस्टोरेशन के लिए भी किया जा सकेगा। इसे सोलर पैनल्स से जोड़कर घरों, सड़कों, सार्वजनिक स्थलों को रोशन किया जा सकता है। यह तकनीक ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ज्यादा उपयोगी साबित होगी, जहां पशुपालकों की बड़ी संख्या होने से गोबर आसानी से उपलब्ध है।
बताया गया कि फैक्ट्रियों और खदानों से निकलने वाले पानी में कैडमियम, क्रोमियम, लेड, निकेल, कॉपर, जिंक जैसे जितने भी हानिकारक तत्व और रसायन हैं, उन्हें इस तकनीक के जरिए आसानी से अलग किया जा सकता है। टेक्सटाइल, पेपर, पेंट सहित अन्य उद्योगों और फैक्ट्रियों से बड़ी मात्रा में निकलने वाला रासायनिक और अवशिष्ट जल पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या है।
गोबर में मौजूद फास्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बन की मदद से फैक्ट्रियों के खतरनाक रसायनयुक्त पानी को शुद्ध करना संभव हो गया है। सबसे बड़ी बात यह कि यह तकनीक खर्च में भी किफायती है। इसके इस्तेमाल से पर्यावरण पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। प्रो. मिश्र के अनुसार यह रिसर्च प्रोजेक्ट 'स्वच्छ भारत मिशन' और 'गोवर्धन योजना' के उद्देश्यों के भी अनुकूल है।