ये हैं नॉर्थ-ईस्‍ट की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्‍टर, कोरोना के मरीजों का जी-जान से कर रही हैं इलाज

First transgender doctor of northeast: बेओंसी लेशराम नॉर्थ-ईस्‍ट की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्‍टर हैं, जो इन दिनों कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के उपचार में लगी हुई हैं।

ये हैं नॉर्थ-ईस्‍ट की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्‍टर, कोरोना के मरीजों की जी-जान से कर रही हैं इलाज
ये हैं नॉर्थ-ईस्‍ट की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्‍टर, कोरोना के मरीजों की जी-जान से कर रही हैं इलाज  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • मणिपुर की बेओंसी लेशराम नॉर्थ-ईस्‍ट की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्‍टर हैं
  • इन दिनों उनकी पहचान एक कोरोना योद्धा के तौर पर है
  • अन्‍य मेडिकल स्‍टाफ की तरह बेओंसी भी कोरोना मरीजों के उपचार में लगी हैं

इम्‍फाल : बेओंसी लेशराम पूर्वोत्तर राज्यों की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्टर हैं, जो कोरोना महामारी के दौर में मरीजों के उपचार में दिन-रात एक किए हुए हैं। मणिपुर की राजधानी इम्फाल में शिजा हॉस्पिटल्स एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर के रूप में कार्यरत बेओंसी यूं तो जिंदगी की चुनौतियों का एक योद्धा की तरह सामना करती रही हैं, लेकिन कोरोना योद्धा का टैग उनके दिल को सबसे अधिक सुकून पहुंचाने वाला है।

इम्‍फाल के रीजनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) की स्‍टूडेंट रह चुकीं बेओंसी आज कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में अन्‍य डॉक्‍टर्स व मेडिकल स्‍टाफ की तरह की महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं और मरीजों की देखभाल कर रही हैं। वह कहती हैं, 'मैं हमेशा से डॉक्‍टर बनकर लोगों की मदद करना चाहती थी।' आज बेओंसी (27) की गिनती भी कोरोना योद्धा के तौर पर होती है, जो उनके दिल को सबसे अधिक सुकून पहुंचाता है।

'मुझे एहसास हो चुका था कि मैं लड़का नहीं हूं'

अपने जीवन की चुनौतियों को बयां करते हुए उन्‍होंने बताया, 'आठवीं तक मुझे इस बात का एहसास हो चुका था कि मैं लड़का नहीं हूं। लेकिन मैंने लोगों को तब तक अपनी पहचान नहीं बताई जब तक कि मैं एमबीबीएस के तीसरे वर्ष में थी। साल 2016 के आसपास मुझे लगा कि मैं इस तरह से जिंदगी नहीं जी सकती। फिर मैंने खुद को एक ट्रांसवुमन के तौर पर पहचाना और इसकी पूरी कोशिश की कि लोग मुझे इसी रूप में पहचानें और अपनाएं।'

इसके लिए पुडुचेरी में उन्‍होंने एक ऑपरेशन भी कराया, जिसके बाद उन्‍हें ट्रांसवुमन के तौर पर पहचान मिली। बेओंसी के अनुसार, 'अब मैं पूरी तरह महिला की तरह दिखती हूं। किसी को भी इसका एहसास नहीं होता कि मैं ट्रांसवुमन हूं, जब तक कि वे मेरी आवाज नहीं सुन लेते। कुछ फिर लोग हैरान होते हैं, पर और कुछ नहीं।' उन्‍होंने यह भी कहा कि मेडिकल कॉलेज में उन्‍हें किसी तरह के भेदभाव सामना नहीं करना पड़ा और सभी ने उन्‍हें उसी तरह स्‍वीकार किया, जैसी वह हैं। डॉक्‍टर और नर्स भी उनके साथ सहयोग करते हैं और एक दोस्‍त की तरह ही उनके साथ व्‍यवहार करते हैं।

'बराबर होता है हर इंसान'

वहीं, जिस अस्‍पताल में बेओंसी फिलहाल कार्यरत हैं, वहां के मशहूर सर्जन व चिकित्‍सा अधीक्षक सोरोखैबम जुगिंद्रा कहते हैं, 'हर इंसान बराबर होता है। बेओंसी को नौकरी देने के दौरान हमने यह नहीं देखा कि उसका लिंग क्‍या है। हां, अस्‍पताल स्‍टाफ में शुरुआत में उसे लेकर कुछ उत्‍सुकता थी, लेकिन अब सब सामान्‍य है।'

बेओंसी अब  कॉस्‍मेटिक सर्जरी में पोस्‍ट ग्रेजुएशन करना चाहती हैं। वह ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों की मदद करना चाहती हैं।

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