कहते हैं 'किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उससे मिलाने की कोशिश करती है'। सल्म में रहने वाली देश की इस बेटी ने भी कुछ सपने देखे थे, लेकिन शुरुआत में सब असंभव लग रहा था। लेकिन, कुछ करने की जिद ने आज उसे उस मुकाम पर पहुंचा दिया, जहां वो लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं। अब ये बेटी अमेरिका जाएगी और ना केवल अपने परिवार का बल्कि देश का नाम भी रौशन करेगी। इस बेटी का नाम है सरिला माली और उसने अमेरिका यूनिवर्सिटी में शानदार उपलब्धि हासिल की है। तो आइए, जानते हैं क्या है सरिता की कहानी...
28 साल की सरिता को अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंग्टन ने फेलोशिप ऑफर की है। सरिता वर्तमान में जेएनयू की छात्रा हैं। इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाली सरिता का जन्म और परवरिश मुंबई के एक स्लम इलाके में ही हुई है। बचपन में उन्होनें मुंबई की रेड लाइट पर फूल बेचे हैं। उन्होंने बताया कि उनका अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में चयन हुआ है। लेकिन, उन्होनें यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को वरीयता दी है। सरिता ने बताया कि अमेरिका की यूनिवर्सिटी ने उनकी मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर वहां की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक 'चांसलर फेलोशिप' उन्हें दी है।
2014 में JNU पढ़ने आई थी सरिता
सरिता 2014 में जेएनयू हिंदी साहित्य में मास्टर्स करने आई थीं। जेएनयू को लेकर सरिता का कहना है कि यहां के शानदार अकादमिक जगत, शिक्षकों और प्रगतिशील छात्र राजनीति ने मुझे इस देश को सही अर्थो में समझने और मेरे अपने समाज को देखने की नई दृष्टि दी है। जेएनयू से मास्टर्स करने के बाद सरिता ने यहीं से एमफिल की डिग्री ली और फिर पीएचडी जमा करने के बाद उन्हें अमेरिका में दोबारा पीएचडी करने और वहां पढ़ाने का मौका मिला है। उनका कहना है कि पढाई को लेकर हमेशा मेरे भीतर एक जूनून रहा है। 22 साल की उम्र में मैंने शोध की दुनिया में कदम रखा था। खुश हूं कि यह सफर आगे 7 वर्षो के लिए अनवरत जारी रहेगा।
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मुंबई के स्लम में हुआ था सरिता का जन्म
सरिता ने बताया कि उनके पिता चाइल्ड लेबर बनकर मुंबई गए थे। मुंबई में 10 बाई 12 की एक छोटी सी जगह में उनके परिवार के छह लोग रहते थे। सरिता ग्रेजुएशन की पढ़ाई तक यहीं स्लम में ही रही। अपने इस मुश्किल भरे सफर और फिर शानदार उपलब्धि के बारे में सरिता ने कहा मुंबई की झोपड़पट्टी, जेएनयू, कैलिफोर्निया, चांसलर फेलोशिप, अमेरिका और हिंदी साहित्य। कुछ सफर के अंत में हम भावुक हो उठते हैं, क्योंकि ये ऐसा सफर है जहां मंजिल की चाह से अधिक उसके साथ की चाह अधिक सुकून देती है। हो सकता है आपको यह कहानी अविश्वसनीय लगे लेकिन यह मेरी कहानी है, मेरी अपनी कहानी। वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से हैं, लेकिन जन्म और परवरिश मुंबई में हुई।