गजब: सदियों से इस गांव में नहीं मनता रक्षा बंधन का त्योहार, सूनी रहती है भाईयों की कलाई, जानें कारण

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आईएएनएस
Updated Aug 10, 2022 | 17:08 IST

Raksha Bandhan 2022 Special: इस साल 11 और 12 अगस्त को रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाएगा। लेकिन, इस देश में एक गांव ऐसा भी जहां यह पर्व नहीं मनाया जाता है।

Raksha Bandhan 2022 festival of Raksha Bandhan is not celebrated in Surana village for centuries
गाजियाबाद के एक गांव में रक्षा बंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है।  
मुख्य बातें
  • देश में धूमधाम से मनाया जाता है रक्षा बंधन का त्योहार
  • गाजियाबाद के सुराना गांव में सदियों से नहीं मन रहा है यह पर्व
  • मोहम्मद गोरी ने किया था गांव पर आक्रमण

Raksha Bandhan 2022 Special: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। भाई-बहन के इस त्योहार का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। भारत में इस त्योहार को लोग काफी धूम-धाम से मनाते हैं। लेकिन, इस देश में एक गांव ऐसा भी है जहां सदियों से इस त्योहार को नहीं मनाया गया है। इस गांव में रक्षा बंधन पर भाईयों की कलाई सूनी रहती है। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से 30 किलोमीटर दूर स्तिथ मुरादनगर के सुराना गांव में 12वीं सदी से ही लोग रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते हैं। इस गांव की बहू तो अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, लेकिन इस गांव की लड़कियां रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाती। इतना ही नहीं इस गांव के लोग यदि कहीं दूसरी जगह भी जाकर बस जाते हैं तो वह भी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते हैं। गांव के लोग इस दिन को काला दिन भी मानते हैं। सुराना गांव पहले सोनगढ़ के नाम से जाना जाता था। सुराना एक विशाल ठिकाना है छाबड़िया गोत्र के चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों का।

राजस्थान के अलवर से निकलकर छाबड़िया गोत्र के अहीरों ने सुराना में छोटी सी जागीर स्थापित कर गांव बसाया। ग्राम का नाम सुराना यानि 'सौ' 'राणा' शब्द से मिलकर बना है। ऐसा माना जाता है कि, जब अहीरों ने इस गांव को आबाद किया तब वे संख्या में सौ थे और राणा का अर्थ होता है योद्धा इसीलिए उन सौ क्षत्रीय अहीर राणाओं के नाम पर ही इस ठिकाने का नाम सुराना पड़ गया। गांव की कुल आबादी 22 हजार के करीब है, इसमें अधिकतर निवासी रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते। क्यूोकि, वह छाबड़िया गौत्र से हैं और वह इस दिन को अपशगुन मानते हैं। हालांकि जो लोग बाद में यहां निवास करने आए वह भी गांव की इस परंपरा को मानने लगे हैं। इसके अलावा जो लोग गांव छोड़कर दूसरी जगह निवास करने चले गए हैं, वह भी रक्षाबंधन को नहीं मनाते। इसके साथ ही गांव में हर घर से एक व्यक्ति सेना या पुलिस में अपनी सेवा दे रहा है और हर साल उनके हाथों की कलाई सुनी रह जाती है।

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कोई नहीं मनाता रक्षा बंधन का त्योहार

गांव के लोगों का कहना है कि छाबड़िया गौत्र के कोई भी व्यक्ति रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाता है। सैकड़ों साल पहले राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोन सिंह राणा ने हिंडन नदी के किनारे डेरा डाला था। जब मोहम्मद गौरी को पता चला कि सोहनगढ़ में पृथ्वीराज चौहान के वंशज रहते हैं, तो उसने रक्षाबंधन वाले दिन सोहनगढ़ पर हमला कर औरतों, बच्चों, बुजुर्ग और जवान युवकों को हाथियों के पैरों तले जिंदा कुचलवा दिया। ऐसा कहा जाता है कि इस गांव में मोहम्मद गोरी ने कई बार आक्रमण किए। लेकिन हर बार उसकी सेना गांव में घुसने के दौरान अंधी हो जाती थी। क्यूोंकि देवता इस गांव की रक्षा करते थे। वहीं, रक्षाबंधन के दिन देवता गंगा स्नान करने चले गए थे। जिसकी सूचना मोहम्मद गौरी को लग गई और उसी का फायदा उठाकर मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर हमला बोल दिया था।ॉ

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ये है पीछे की कहानी

कुछ लोगों का मानना है कि सन 1206 में रक्षाबंधन के दिन हाथियों द्वारा मोहम्मद गौरी ने गांव में आक्रमण किया था। आक्रमण के बाद यह गांव फिर बसा। क्योंकि गांव की रहने वाली एक महिला 'जसकौर' उस दिन अपने पीहर गई हुई थी, इस दौरान जसकौर गर्भवती थी, जो कि गांव में मौजूद न होने के चलते बच गई। बाद में जसकौर ने दो बच्चों 'लकी' और 'चुंडा' को जन्म दिया और दोनों बच्चे ने बड़े होकर वापस सोनगढ़ को बसाया। हालांकि गांव के कुछ लोग ऐसे हैं जिनके घर रक्षाबंधन के दिन बेटा या उनके घर में पल रही गाय को बछड़ा हुआ। इसके बाद उन्होंने फिर त्यौहार को मनाने का प्रयास किया, लेकिन घर में हुई दुर्घटना के चलते फिर कभी किसी ने रक्षाबंधन नहीं मनाया।


 

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