नई दिल्ली : रंग व खुशियों का त्योहार होली भला किसे नहीं भाता। इस दिन सारे गिले-शिकवे भूल हर कोई एक-दूसरे को रंग लगाता है और खुशियों का यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो जानवरों के साथ भी होली खेल डालते हैं। उन्हें रंग लगा देते हैं। हर्षोल्लास में हम भूल जाते हैं, खुशी-खुशी लगाया गया यह रंग हमारे पालतू जानवरों व स्ट्रे एनिमल्स को बड़ी तकलीफ दे सकता है।
कुत्ते और बिल्लियां ऐसे कुछ जानवर हैं, जिन पर होली में लोग गुलाल और पानी के गुब्बारे डाल देते हैं। लेकिन उन्हें यह अंदाजा नहीं होता कि इंसान तो अपनी त्वचा पर लगे रंग आसानी से छुड़ा सकते हैं, पर जानवर ऐसा नहीं कर सकते। ये रंग उनकी त्वचा पर लंबे समय तक रहते हैं, जो उनके लिए कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर देते हैं। यहां तक कि 'हर्बल' के तौर पर बिकने वाले रंग भी उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।
दरअसल, इंसानों से अलग कुत्तों या बिल्लियों में उस तरह की प्रतिरक्षा तंत्र नहीं होता, जो उन्हें रंगों में होने वाले रसायनों और इसके कारण होने वाले किसी भी बुरे प्रभाव का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त क्षमता प्रदान करें। होली के दौरान इस्तेमाल होने वाले अधिकांश सूखे रंगों में मरकरी सल्फेट और धातु ऑक्साइड जैसे रसायन होते हैं, जो जानवरों की त्वचा की एलर्जी और सूजन पैदा कर सकते हैं।
होली के दौरान कई बार सड़कों से गुजरने वाले आवारा कुत्ते रंगीन पानी से भरे अक्सर पानी के गुब्बारे की चपेट में आ जाते हैं। यह इतना खतरनाक होता है कि इससे उनकी आंखों की रोशनी भी जा सकती है। पालतू जानवरों पर कलर पाउडर डालना भी बेहद खतरनाक है। ये बड़ी तेजी से उनके नाक के जरिये शरीर में प्रवेश कर उनमें सांस लेने की दिक्कत बढ़ा सकता है।