9 महीने के खूनी संघर्ष के बाद पाकिस्‍तान से अलग बना बांग्‍लादेश, अहम थी भारत की भूमिका

बांग्‍लादेश की आजादी की घोषणा 26 मार्च, 1971 को की गई थी। बांग्‍लादेश के मुक्ति संग्राम में भारत की अहम भूमिका रही थी। तब पूर्वी पाकिस्‍तान में 9 महीने तक खूनी संघर्ष की स्थिति बनी रही थी।

नरल नियाजी के साथ करीब 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए थे
नरल नियाजी के साथ करीब 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए थे  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • बांग्‍लादेश की आजादी की घोषणा 26 मार्च, 1971 को की गई थी
  • 9 महीने के खूनी संघर्ष के बाद बांग्‍लादेश को पाकिस्‍तान से आजादी मिली थी

नई दिल्‍ली : बांग्‍लादेश आज अपनी आजादी की 50वीं वर्षगांठ मना रहा है, जिस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विभिन्‍न कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए ढाका पहुंच रहे हैं। पीएम मोदी बांग्लादेश की स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती और बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की जन्म शताब्दी समारोह को लेकर मनाए जाने वाले भव्य कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। बांग्‍लादेश की स्‍वतंत्रता की घोषणा 26 मार्च, 1971 को की गई थी। 

भारत की अहम भूमिका

बांग्‍लादेश की आजादी में भारत की भूमिका अहम रही थी। इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि इसके लिए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) से किनारा कर सोवियत संघ से हाथ मिला लिया था, जिसकी बुनियाद देश के पहले प्रधामनंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी और भारतीय विदेश नीति में काफी अहम समझा जाता रहा है। इसे इंदिरा गांधी के राजनीतिक करियर के महत्‍वपूर्ण फैसलों में गिना जाता है।
 
पूर्वी पाकिस्‍तान जब आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था, मुक्ति वाहिनी की प्रशिक्षण, आश्रय और हथियार जैसी जरूरतें भारत की मदद से ही पूरी हुई। भारत ने तब पूर्वी पाकिस्‍तान से लाखों की संख्‍या में आने वाले शरणार्थियों को आश्रय और भोजन भी मुहैया कराया था। एक स्वतंत्र बांग्लादेश के लिए पूरे भारत से सहज समर्थन मिल रहा था। बिहार, उत्‍तर प्रदेश, असम, नागालैंड, त्रिपुरा जैसे कई राज्यों ने भी बांग्‍लादेश की स्‍वतंत्रता के समर्थन में अपनी विधानसभाओं में प्रस्‍ताव पारित किया था।

शेख मुजीब आजादी के नायक

यूं तो बांग्‍लादेश की आजादी को लेकर बुनियाद साल 1952 में ही पड़ गई थी, जब पाकिस्‍तान की हुकूमत ने उर्दू को पूरे देश की आधिकारिक भाषा बनाने की घोषणा की, लेकिन मुल्‍क की आजादी को लेकर निर्णायक संघर्ष साल 1971 में नौ महीनों के लिए हुआ, जिसकी शुरुआत 26 मार्च को बांग्‍लादेश की आजादी की घोषणा के साथ ही हो गई। आजादी के इस जंग के नायक शेख मुजीबउर रहमान थे, जिन्‍हें पाकिस्‍तान की सेना ने उसी रात गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी के तीन दिन बाद उन्‍हें कराची ले जाया गया था।

मुजीबउर रहमान को करीब नौ महीने तक मियांवाली जेल की कालकोठरी में रखा गया था। इस बीच ढाका की सड़कों पर मारकाट मची हुई थी। पाकिस्‍तानी सेना का दमन मानवाधिकार उल्‍लंघन के सभी रिकॉर्ड तोड़ रहा था। महिलाओं के साथ दुष्‍कर्म जैसी जघन्‍य वारदातें भी सामने आ रही थीं। लेकिन पूर्वी पाकिस्‍तान में स्‍वतंत्रता की भावना इस कदर मजबूत थी कि पाकिस्‍तानी सेना तमाम हथकंडों के बावजूद उन्‍हें कुचलने में नाकाम रही।

पाकिस्‍तान के साथ भारत का संघर्ष

इस दौरान पाकिस्‍तान के साथ भारत का सशस्‍त्र संघर्ष औपचारिक तौर पर 3 दिसंबर को पाकिस्‍तानी सेना द्वारा भारत पर हमले के साथ शुरू हुआ था। करीब 13 दिनों तक चली जंग 16 दिसंबर, 1971 को खत्‍म हुई थी, जब पाकिस्तान के जनरल नियाजी के साथ करीब 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए थे। भारत में यह दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। बांग्‍लादेश की आजादी के बाद शेख मुजीबउर रहमान को पाकिस्‍तान से 7 जनवरी, 1972 में रिहा किया था।

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