Bucha massacre: रूस के मुद्दे पर UN में भारत के गैरहाजिर होने के मायने समझिए

दुनिया
ललित राय
Updated Apr 08, 2022 | 07:57 IST

गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र का सभागार रूस के मुद्दे पर भरा हुआ था। मसला रूस को यूएनएचआरसी से बाहर करने का था। मतदान हुआ नंबर रूस के खिलाफ गया। लेकिन उस मतदान प्रक्रिया की खास बात यह थी कि भारत उससे अलग रहा। भारत समेत 58 देशों ने तटस्थ रुख अपनाया और यहीं से समझने की कोशिश करेंगे कि भारत की रणनीति के मायने क्या हैं।

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Bucha massacre: रूस के मुद्दे पर UN में भारत के गैरहाजिर होने के मायने समझिए 
मुख्य बातें
  • यूएनएचआरसी से रूस को बाहर करने के मामले में 58 देश तटस्थ रहे
  • भारत समेत पड़ोसी देशों ने मतदान की प्रक्रिया से रहे दूर
  • बूचा मामले में भारत स्वतंत्र जांच की कर चुका है मांग

गुरुवार को 93 देशों ने रूस को यूएनएचआरसी से बाहर रखने का फैसला सुना दिया। यह बात अलग थी कि रूस के समर्थन में 24 देश खुलकर आए और 58 देशों ने खुद को वोटिंग प्रक्रिया से अलग रखा। अगर संख्या बल को देखें तो दुनिया के 93 देशों ने माना कि बूचा में जो कुछ हुआ उसके लिए रूस पूरी तरह जिम्मेदार है। लेकिन 24 देशों ने इस बात पर मुहर लगाई कि रूस ने कुछ गलत नहीं किया। जबकि 58 देशों ने अलग अलग कारणों से अपने आपको वोटिंग प्रक्रिया से बाहर रखा जिसमें भारत भी शामिल था। भारत ने वोटिंग से पहले भी अपनी राय स्पष्ट कर दी थी कि बूचा में जो कुछ हुआ किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। अब यहां से दो तरह की बात सामने आती है कि पहला क्या गुट निरपेक्ष आंदोलन आज भा प्रासंगिक है, दूसरा यह कि भारत की विदेश नीति किसी सुपर पावर यानी अमेरिका के दबाव में नहीं है।

सबसे पहले बात करेंगे कि भारत समेत कौन से देश मतदान की प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए

  1. भारत
  2. पाकिस्तान
  3. बांग्लादेश
  4. भूटान
  5. नेपाल
  6. श्रीलंका,
  7. सऊदी अरब
  8. यूएई
  9. मिस्र, 
  10. कतर,
  11. इराक, 
  12. इंडोनेशिया
  13. दक्षिण अफ्रीका,
  14. सिंगापुर
  15. मलेशिया
  16. ब्राजील

गुट निरपेक्ष आज भी प्रासंगिक
कुल 58 देशों की सूची में से कुछ खास नाम का जिक्र यहां पर है। अगर आप इस सूची को देखें को तो भारत के सभी पड़ोसी मुल्कों ने खुद को मतदान की प्रक्रिया से दूर रखा। यानी यह संदेश देने की कोशिश की यूक्रेन में रूस जो कुछ कर रहा है उसे वो सही तो नहीं ठहराते हैं, लेकिन बिना किसी जांच किसी मुल्क को गलत मान लेना भी सही नहीं है। इससे भी बड़ी बात यह है कि क्या भारत संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि वो किसी गुट का हिस्सा नहीं बन सकता। यहीं से हमें इतिहास में चलना होगा। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब वैश्विक हालात तेजी  से बदले तो दुनिया दो अलग अलग खेमों में बंट गई थी। एक खेमे की अगुवाई अमेरिका तो दूसरे खेमे की अगुवाई रूस कर रहा था। भारत को आजादी मिले बहुत वक्त नहीं बीते थे, भारत के नीतिय नियंताओं के सामने चुनौती थी कि उनका रुख क्या हो। लंबे विचार और विमर्श के बाक दुनिया के कुछ मुल्क आए जिन्होंने फैसला किया कि वो किसी गुट का हिस्सा नहीं बनेंगे और इस तरह से गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी थी। 

90 के दशक में जब सोवियत संघ का बंटवारा हुआ तो दुनिया एक खेमे में सिमट गई और बहुत से मौकों पर लगा कि गुट निरपेक्ष आंदोलन अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। लेकिन जिस तरह से रूस और यूक्रेन के मुद्दे पर भारत ने अपना रुख साफ किया है वो इस बात कि तरफ इशारा कर रहा है कि भले ही पश्चिमी मुल्क मानते हों कि गुट निरपेक्ष सिर्फ शब्दों में सुनने में अच्छा लगता है उसका कोई अस्तित्व ही नहीं  वो सोच गलत साबित हो जाती है। 

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अमेरिका के लिए क्या है संदेश
रूस यूक्रेन संकट में अमेरिका जेलेंस्की के साथ खड़ा जरूर है। लेकिन खुल कर समर्थन करने से बच रहा है। लेकिन वो उन देशों को धमकाने की कोशिश कर रहा है कि जो परोक्ष तौर पर रूस के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। हाल ही में जब अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह भारत में थे तो उन्होंने चीन का नाम लेकर एक तरह के बांह मरोड़ने की कोशिश की। लेकिन भारत ने अपने रुख को साफ कर दिया। बड़ी बात यह थी कि कांग्रेस ने ी भारत सरकार के रुख का समर्थन करते हुए अमेरिका को चीन युद्ध की याद दिला दी। बड़ा सवाल यह है कि क्या अमेरिका सिर्फ अपने तेल को बेचने की कोशिश में है। इसके बारे में जानकार कहते हैं कि जब से रूस ने भारत को सस्ते दर पर तेल निर्यात का प्रस्ताव दिया है उसके बाद से अमेरिका बौखलाया हुआ है। लेकिन भारत भी अमेरिका को संदेश दे रहा है कि हम किसी के बेजा दबाव में नहीं आने वाले हैं। 

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