नई दिल्ली। चीन की विस्तारवादी नीति के बारे में पीएम नरेंद्र मोदी खुलकर चर्चा करते हैं। वो कहते हैं कि सच तो यह है जमाना अब विस्तारवाद नहीं बल्कि विकासवाद का है। इन सबके बीच चीन ने रूस के व्लादिवोस्तक शहर पर दावा ठोका है और इस वजह से चीन और रूस के बीच तनाव बढ़ गया है। अगर रूस और चीन के ऐतिहासिक संबंधों को देखें तो रूस कभी सीधे तौर पर चीन के खिलाफ नहीं गया।लेकिन जिस तरह से लद्दाख में एलएसी के मुद्दे पर भारत और चीन के बीच तनाव है उसके बीच एक नये समीकरण के उभरने की संभावना दिखाई दे रही है। दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर अमेरिका और चीन की अदावत किसी से छिपी नहीं है। जानकार मानते हैं कि रूसस अमेरिका और भारत के बीच समीकरण बन सकता है। हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो इस तरह की संभावना से इनकार करते हैं।
व्लादिवोस्तोक शहर पर चीन का दावा
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की खबर के मुताबिक चीन ने अब रूस के शहर व्लादिवोस्तोक पर अपना दावा किया है। सीजीटीएन के संपादक शेन सिवई ने दावा किया कि व्लादिवोस्तोक शहर 1860 से पहले चीन का हिस्सा था। यही नहीं उस शहर को पहले हैशेनवाई के नाम से जाना जाता था।लेकिन रूस ने एकतरफा संधि के जरिए चीन से छीन लिया। व्लादिवोस्तोक शहर पर चीन के दावे के बाद रूस के साथ उसके संबंधों में खटास आई है। बता दें कि रूस व्लादिवोस्तोक को 'रूलर ऑफ द ईस्ट' कहता है जबकि चीन के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने इसे हैशेनवाई बताया है।
रूस को लेकर चीन में विरोध
चीन में कई पोस्टरों के जरिए सरकार से मांग की जा रही है कि वो न सिर्फ हैशेवाई पर नजरिया साफ करे बल्कि क्रीमिया के बारे में अपने रुख में बदलाव करे।बता दें कि रूस ने 1904 में चीन पर कब्जा कर लिया था। जानकारों की कहना है कि चीन में इस विरोध के बाद रूस को यह अहसास हो गया है कि सीमा विवाद का मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ है। चीन की दावेदारी इस संबंध को खराब कर रही है।
भारत को रूसी हथियार देने से चीन खफा
रूस भारत को चीन के विरोध के बाद भी अत्याधुनिक हथियारों की आपूर्ति कर रहा है और वो हथियारों संबंधी समझौता गलवान घाटी में खूनी संघर्ष ते बाद तेज हुए है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ने रूस की यात्रा की थी और फाइटर जेट तथा अन्य घातक हथियारों की आपूर्ति के लिए समझौता किया था। इसे लेकर चीन न केवल खफा है कि बल्कि चीन में इसका विरोध भी हो रहा है लेकिन रूस का कहना है कि वह भारत को हथियारों की आपूर्ति गलवान हिंसा के पहले से ही कर रहा है। भारत के एयरक्राफ्ट कैरियर से लेकर परमाणु सबमरीन सब रूसी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय भारत का हथियारों का बाजार अमेरिका और फ्रांस के कारण बहुत प्रतिस्पर्द्धात्मक हो गया है और रूस इसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता है।