नई दिल्ली : बढ़ती आबादी पर कभी सख्त नीति लागू करने वाले चीन की सोच अब बदल गई है। बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाने के लिए चीन ने कभी 'वन चाइल्ड पॉलिसी' लागू की। दशकों तक देश में एक बच्चे की नीति लागू होने का नतीजा उसके लिए अच्छा नहीं रहा। इसके दुष्परिणाम जब उसके सामने आए तो उसने 'टू चाइल्ड पॉलिसी' लागू की। इससे भी काम नहीं बना तो अब उसने 'थ्री चाइल्ड पॉलिसी' को मंजूरी दे दी है। चीन की सरकार का कहना है कि शादी-शुदा जोड़े अब तीन बच्चे पैदा कर सकते हैं। दरअसल, बच्चे पैदा करने की नीति में इस बदलाव को विशेषज्ञ चीन की कम्युनिस्ट सरकार की मजबूरी से जोड़कर देख रहे हैं।
चीन ने साल 1979 में 'वन चाइल्ड पॉलिसी' लागू की
जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए चीन ने साल 1979 में 'वन चाइल्ड पॉलिसी' लागू की। लोगों की इच्छाओं की विपरीत उसने इस नीति को सख्ती से लागू किया। दशकों बाद चीन की महसूस हुआ कि उसके यहां बुजुर्गों की तादाद बढ़ती जा रही है और युवाओं की संख्या कम हो रही है। इस अनुपात को संतुलित और अपनी जरूरतों एवं हितों को पूरा करने के लिए उसने साल 2016 में 'टू चाइल्ड पॉलिसी' को मंजूरी दी। दो बच्चों की नीति के लागू होने के 5 साल बाद भी जन्म दर में सुधार नहीं आया है। चीन की जनसंख्या के आंकड़ों के मुताबकि 1950 के दशक के बाद जन्म दर का विकास सबसे निचले स्तर पर आ गया है।
एक से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करने चाहते लोग
चीन की इस नई नीति को लेकर लोगों में संशय है। शादी-शुदा जोड़े एक से ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए तैयार नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस नई नीति के बाद चीन के ग्रामीण इलाकों में लोग भले ही दो या तीन बच्चे पैदा करने की सोचे लेकिन शहरों में रहने वाले शादी-शुदा जोड़े शायद ही एक से ज्यादा बच्चे पैदा करने के बारे में सोचेंगे। दरअसल, इसके पीछे सबसे बड़ी वजह बच्चों की परवरिश और उनकी पढ़ाई-लिखाई होने वाला खर्च है। चीन में बच्चे की परवरिश काफी महंगी हो गई है। युवा पीढ़ी बच्चे पैदा करने से ज्यादा अपने करियर को ज्यादा अहमियत दे रही है।
आर्थिक एवं सामरिक जरूरतों की वजह से उठाया कदम
पिछले महीने की शुरुआत में चीन के जनसंख्या के आंकड़े जारी हुए। इसमें बताया गया है कि चीन में पिछले साल 1.2 करोड़ बच्चों ने जन्म लिया। जबकि 2016 में यह संख्या 1.8 करोड़ थी। यह 1960 के बाद सबसे बच्चों के जन्म की सबसे कम संख्या है। चीन की अपनी बच्चा नीति में बदलाव करने के पीछे बुजुर्गों का बढ़ता भार तो है ही। इसके अलावा सामरिक एवं अर्थव्यवस्था से जुड़ी जरूरतें भी हैं जिन्होंने उसे इस तरह का कदम उठाने के लिए बाध्य किया है।
मुश्किल हो सकता है सुपर पावर बने रहना
चीन को आशंका है कि जन्म दर में आई यह गिरावट यदि आगे भी जारी रही तो खुद को सुपर पावर बनाए रखने का उसका सपना टूट सकता है। बढ़ते बुजुर्गों को देखभाल करने के लिए उसे युवा पीढ़ी और स्वास्थ्य सुविधाओं दोनों की जरूरत है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैनुफक्चरर है। युवी पीढ़ी की संख्या कम होने से उसे कामगार श्रमिक नहीं मिलेंगे जिसका सीधा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। आर्थिक महाशक्ति बने रहने के लिए उसे अपना उत्पादन लगातार बढ़ाने की जरूरत है। चीन में वस्तुओं का उत्पादन यदि कम होगा तो इसका असर वैश्विक अर्थव्सव्था पर भी पड़ेगा।
सेना में जवानों की होगी कमी
देश में 'वन चाइल्ड पॉलिसी' लागू होने के बाद लोगों ने 2016 तक एक बच्चा पैदा किया। उन्होंने अपने एकलौते बच्चे को सेना में भेजने की जगह आईटी, सर्विस सेक्टर और अन्य सेवाओं की तरफ भेजा। चीन की सेना के समक्ष नए जवानों और अफसरों की कमी सामने आई है। लोग अपने बच्चों को सेना में भेजने से हिचक रहे हैं। चीन अपनी सैन्य ताकत पर इतराता है। जाहिर है कि सेना में जवानों एवं अफसरों की कमी उसे चिंता में डालने वाली है। आबादी को कभी अभिशाप समझने वाले चीन को युवा पीढ़ी की ताकत का अहसास तब जाकर होना शुरू हुआ है जब उसकी एक बड़ी आबादी बुढ़ापे की तरफ जा रही है।