नई दिल्ली। चीन के बारे में माना जाता है कि उसकी नीति में नैतिकता की कमी होती है। दुनिया के अलग अलग देश उससे संबंध रखना चाहता है लेकिन एक डर भी बना रहता है। 21वीं सदी की शुरुआत के बाद चीन अपने आपको इस तरह से पेश कर रहा है कि नई व्यवस्था में सिर्फ और सिर्फ एक ऐसा देश वो खुद है जो सभी तरह की चुनौतियों का सामना कर सकता है और उस मकसद को हासिल करने के लिए उसे सैन्य तौर पर मजबूत होना होगा। अब चीन, इस तरह की सोच के साथ आगे क्यों बढ़ रहा है उसके बारे में जानकारों की राय अलग अलग है।
सैन्यीकरण की दिशा में और आगे बढ़ा चीन
जानकार कहते हैं कि शी जिनपिंग समय समय पर अपनी जनता को बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर अगर देश को अपनी धमक स्थापित करनी है तो उसके लिए सैन्य क्षेत्र में ताकतवर होना होगा। इसके साथ ही उन तमाम तरह की विभाजनकारी शक्तियों पर लगाम लगाने की जरूरत है जो चीन को वैश्विक ताकत बनने से रोक रहे हैं।
चीन की इस विस्तारवादी नीति से ना सिर्फ उसके पड़ोसी बल्कि अमेरिका को भी लगता है कि एक ना एक दिन चीन युद्ध के मैदान में आमने सामने आ सकता है। जिस तरह से पीपल्स लिबरेशन आर्मी ग्रे जोन टैक्टिस पर काम कर रही है, जिस तरह से दक्षिण चीन सागर में दिनोंदिन जमीनों पर अतिक्रमण किया जा रहा है उससे चीन के इरादे साफ हैं। अमेरिका में एक थिंक टैंक से जुड़े लोगों को कहना है कि ताइवान के संदर्भ में चीन की चुनौती को नजरंदाज करना सही नहीं होगा।
चीन की विस्तारवादी नीति से हर कोई परेशान
द फाइव ईयर स्कैन- असेसिंग पीएलए रिफार्म्स, रेडीनेस एंड पोटेंशियल इंडो स्पेस्फिक कंटिजेंसी में इस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। इस दस्तावेज के जरिए चीन के बारे में दो तरह की बातें कही गई हैं। पहला तो यह है कि पीएलए को मजबूत कर चीन ये संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि सुपरपावर देश यानी अमेरिका उसे हल्के में ना ले। दूसरा यह है कि वो किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से ज्यादा खुद को सुरक्षित रखने का काम कर रहा है। इस विषय पर मार्क्स स्टोक्स कहते हैं डेटरेंट शब्द अपने आप में अलहदा है। यह डेटरेंट कब आक्रामक रुख अपना लेता है वो शासन सत्ता में शामिल लोगों के दिमाग पर निर्भर करता है।