नई दिल्ली : दक्षिण एशिया में सैन्य तख्तापलट के लिए पाकिस्तान के बाद म्यांमार का नंबर आता है। पाकिस्तान की तरह यह देश भी सेना के तख्तापलट का सामना करता आया है। इस देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के आगे बढ़ने और उसे मजबूत होने के अब तक कम ही अवसर मिले हैं। म्यांमार के घटनाक्रम पर भारत सहित दुनिया भर की नजर है। सैन्य तख्तापलट पर अमेरिका सहित अन्य देशों ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है वह स्वागतयोग्य है। अमेरिका ने इस देश पर प्रतिबंध लगाने की भी बात कही है। बहरहाल, स्टेट काउंसलर और अन्य नेताओं को नजरबंद किए जाने के बाद म्यांमार का राजनीतिक भविष्य अधर में लटक गया है। चुनाव में धांधली का आरोप लगाकार देश में एक साल तक आपातकाल लागू किया गया है।
जाहिर है कि म्यांमार में अगले एक साल तक सेना के जनरलों का राज चलेगा। इस बदली हुई परिस्थिति का लाभ चीन उठा सकता है। म्यांमार के साथ भारत की करीब 1600 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है। इसके अलावा दोनों देशों की सीमा समुद्र में भी मिलती है। भारत को इसे लेकर बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। चीन हमेशा से इस देश में अपना प्रभुत्व जमाने की कोशश करता आया है। चूंकि, एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार की जगह एक तानाशाह को अपने झांसे एवं दबाव में लेना चीन के लिए मुश्किल काम नहीं है। इसलिए चीन इस सैन्य तख्तापलट को अपने लिए हमेशा एक अवसर के रूप में देखेगा।
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट का लंबा इतिहास रहा है। इस देश के महत्वपूर्ण घटनाक्रम कुछ इस प्रकार हैं-