नई दिल्ली। कोरोना महामारी का सिर्फ एक ही इलाज है कि इससे संबंधित कोई वैक्सीन आ जाए। वैक्सीन की रेस में कई देश हैं लेकिन बाजी मारने का दावा रूस ने किया। रूस ने मंगलवार को स्पुतनिक v उतारा। सबसे बड़ी बात यह है कि इसका पहला डोज राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बेटियों को दिया गया। दुनिया के सामने वैक्सीन के आने से आस बंधी है कि जल्द से जल्द कोरोना महामारी पर काबू पा लिया जाएगा। लेकिन रूसी वैक्सीन के दावे पर कुछ खास मुल्क जैसे अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन के साथ साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन को गहरा शक है।
वैक्सीन लांच करने की टाइमिंग शक की बड़ी वजह
दरअसल शक की सबसे बड़ी वजह वैक्सीन लांच करने की टाइमिंग है। रूस की तरफ से पहले कहा गया था कि कोरोना के खिलाफ वैक्सीन को सितंबर के महीने में लांच किया जाएगा। लेकिन 11 अगस्त को ही वैक्सीन लांच कर दी गई। इसके साथ यह भी कहा जा रहा है कि जिस तरह से कोरोना वायरस अपना स्ट्रेन बदल रहा है वैसे में कम से कम तीन फेज का ट्रायल होना चाहिए। लेकिन रूस ने इसे फेज वन ट्रायल के बाद ही उतार दिया। इससे भी बड़ी बात यह है कि फेज वन का पूरा डेटा भी रूस मुहैया नहीं करा रहा है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से इस तरह की मांग की गई है।
अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को ऐतराज
अमेरिका का कहना है कि यह बात सच है कि दुनिया के लिए कोरोना के खिलाफ वैक्सीन की जरूरत है। लेकिन जल्दबाजी में वैक्सीन कैसे लांच की जा सकती है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कहा था कि बहुत जल्द अमेरिका की तरफ से खुशखबरी आएगी हालांकि उन्होंने किसी महीने या दिन का ऐलान नहीं किया था। इसी तरह जर्मनी का भी कहना है कि रूस का दावा विश्वास करने योग्य नहीं है। हमें यह देखना होगा स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि से यह कितना कारगर होगा। ब्रिटेन की तरफ से कमोबेश इसी तरह की प्रतिक्रिया है। यहां समझना होगा कि ब्रिटेन की आक्सफोर्ड- एस्ट्रोजेनिका को दुनिया में विश्वसनीय वैक्सीन के तौर पर देखा जा रहा है।
जानकारों की राय
इस विषय पर जानकारों का कहना है कि यह बात सच है कि फेज टू और फेज थ्री का डेटा रूस की तरफ से मुहैया नहीं कराया गया है। लेकिन सीधे तौर पर रूसी वैक्सीन को खारिज नहीं किया जा सकता है। कोई भी देश इतने बड़े पैमाने पर जोखिम नहीं ले सकता है। बड़ी बात यह है कि अगर स्पुतनिक v वैक्सीन कामयाब हो जाती है कि न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस की धाक बढ़ेगी बल्कि उसे आर्थिक फायदा होगा। ऐसा हो सकता है कि अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को यह नागवार लग रहा हो और उनकी तरफ से कहा जा रहा है कि रूसी वैक्सीन सेफ नहीं है।