एक कहावत है कि शक्तिशाली लोगों से पंगा लेने का मतलब होता है खुद का नुकसान कर बैठना। दरअसल यह कहावत पाकिस्तान के पीएम इमरान खान पर सटीक बैठती है। पाकिस्तान के विपक्षी दल उन्हें सत्ता से बेदखल करने की मुहिम में जुटे हुए हैं। लेकिन इमरान खान अंतिम बॉल तक लड़ाई की बात कह उन्हें चुनौती पेश कर रहे हैं। लेकिन जब इमरान खान की पार्टी ने एक खत का जिक्र किया और जिसके हवाले से बताया कि अमेरिका और यूरोप नहीं चाहते कि इमरान खान की कुर्सी बरकरार रहे तो यहीं से मामला उल्टा पड़ गया।
जब पीटीआई ने अमेरिका का लिया नाम
अमेरिका ने साफ कर दिया है कि उसका किसी खत से लेना देना नहीं है। वो किसी दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल भी नहीं देता। अब यहीं से सवाल है कि क्या इमरान खान लोकप्रियता बनाए या बचाए रखने के लिए जाल बूना उसमें कहीं फंस तो नहीं गए। अमेरिका ने कहा कि इस तरह की बातों का कोई अर्थ नहीं है। किसी देश में किसी सरकार के खिलाफ अगर विपक्षी दल आवाज उठाते हैं तो वो उनका हक है। इस तरह के ओछे आरोप लगाना ठीक नहीं है। हम इसकी निंदा करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि इमरान खान से अमेरिका का नाम क्यों लिया। क्या वो सिर्फ अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए अमेरिका का नाम ले अपने आवाम को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं देखिए जी मेरी सरकार के पीछे तो विपक्ष के साथ साथ विदेशी भी पड़े हुए हैं। लेकिन पाकिस्तान की स्थिति क्या है उसे भी समझने की जरूरत है।
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इमरान के शासन में कैसा है नया पाकिस्तान
पाकिस्तानी रुपये-यूएसडी विनिमय दर में असंतुलन बढ़ गया है। पाकिस्तान के पास केवल 12 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का विदेशी रिजर्व है। इसके साथ ही महंगाई की दर 12.72 प्रतिशत के आंकड़े को छू रही है। इमरान खान के नेतृत्व में पाकिस्तान में आर्थिक स्थिति खराब है, उनकी विदेश नीति के जार शाह महमूद कुरैशी ने चीन से 2.4 बिलियन अमेरीकी डालर का कर्ज उतारने की भीख मांगी। इस तरह की तस्वीर को जब विपक्षी दल पेश कर रहे हैं तो इमरान खान विदेशी साजिश का आरोप लगा रहे हैं ताकि उन्हें जनता से समर्थन मिल सके।